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________________ १, २, १.] दव्वपमाणाणुगमे णिदेसपरूवणं त्तीदो । अधवा कम्मधारयसमासो कादयो दव्यमेव पमाणं दव्यपमाणमिदि। एत्थ वि ण दधपमाणाणमेयंतेण एगत्तं, एकत्थ समासाभावादो । अधवा दुंदसमासो कादव्यो । तं जधा, दव्यं च पमाणं च दव्वपमाणमिदि । दुदसमासो अवयवपहाणो त्ति दव्यपमाणाणं पुध पुध परूवणं पावेदि । ण च सुत्ते पुध पुध दव्य-पमाणाणं परूवणा कदा । जदि वि समुदयपहाणो दुंदसमासो आसइजदि तो वि अवयववदिरित्तसमुदायाभावादो अवयवाणं चेव परूवणा पावेदि । ण च सुत्ते अवयवाणं समूहस्स वा परूवणा कदा । तदो ण दुंदसमासो कीरदि ति ? ण एस दोसो, दबस्स पमाणे परूविदे दव्यं पि परूविदमेव : कुदो ? दयवदिरित्तपमाणाभावादो। तिकालगोयराणंतपजयाणमण्णोणाजवुत्ती दव्यं । वुत्तं च नयोपनयैकान्तानां त्रिक लानां समुच्चयः । अविभ्राड्भावसम्बन्धी द्रव्यमेकमनेकधा' ॥ ३ ॥ संखाणं दधस्सेको पजाओ, तदो ण दोण्हमेगतमिदि । वुतं चद्रव्य और प्रमाण इन दोनों पदोंमें ‘दव्यमेव पमाणं दवपमाणं' अर्थात् द्रव्य ही प्रमाण द्रव्यप्रमाण है, इसप्रकार कर्मधारय समास करना चाहिए । यहां पर भी द्रव्य और प्रमाण इन दोनों में एकान्तसे एकत्व अर्थात् अभेद नहीं है, क्योंकि, सर्वथा एकार्थमें अर्थात् अभेदमें समास ही नहीं हो सकता है । अथवा, द्रव्य और प्रमाण इन दोनों पदों में द्वन्द्वसमास करना चाहिये । वह इसप्रकार है, द्रव्य और प्रमाण द्रव्यप्रमाण । शंका-द्वन्द्वसमास अवयवप्रधान होता है, इसलिये द्रव्य और प्रमाणका पृथक् पृथक् प्ररूपण प्राप्त हो जाता है। परंतु सूत्रमें द्रव्य और प्रमाणका पृथक पृथक् कथन नहीं किया है । यद्यपि समुदायप्रधान भी द्वन्धसमास हो सकता है, तो भी अवयवोंको छोड़कर समुदाय पाया नहीं जाता है, इसलिये समुदायप्रधान द्वन्द्वसमासके करने पर भी अवयवोंकी ही प्ररू. पणा प्राप्त होती है। परंतु सूत्र में अवयवोंकी अथवा समूहकी प्ररूपणा नहीं की गई है। इस लिये द्रव्य और प्रमाण इन दोनों पदोंमें द्वन्द्वसमास नहीं किया जा सकता है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, द्रव्यके प्रमाणके प्ररूपण कर देने पर द्रव्यका भी प्ररूपण हो ही जाता है, क्योंकि, द्रव्यको छोड़कर उसका प्रमाण नहीं पाया जाता है। त्रिकालगोचर अनन्त पर्यायोंकी परस्पर अपृथग्वृत्ति द्रव्य है। कहा भी है" जो नैगमादि नय और उनकी शाखा उपशाखारूप उपनयोंके विषयभूत निकालवर्ती पर्यायोंका अभिन्न संबन्धरूप समुदाय है उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य कथंचित् एकरूप और कथंचित् अनेकरूप है ॥ ३॥ द्रव्यकी एक पर्याय संख्यान है, इसलिये द्रव्य और प्रमाणमें एकत्व अर्थात् सर्वथा अभेद नहीं है । कहा भी है १ आ. मी. १०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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