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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, १.
दव्वाणि । एदेसु छसु दन्त्रेसु केण दव्त्रेण पगदं ? जस्स संताणिओगद्दारे चोदसमग्गणठाणेहि चोदसजीव समासाणमत्थित्तं परूविदं जीवदव्वस्त तेण पगदं । तं कधं णव्यदि ति भणिदे 'मिच्छादिट्ठी केवडिया ' इदि सेसदव्त्राणं परिमाणमुज्झिदूण जीवदव्त्रपरिमाण परूवयसुत्ताद जाणिजदि जीवदव्त्रेणेक्केण चेव पगदं ण अण्णदेहिं ति । प्रमीयन्ते अनेन अर्था इति प्रमाणम् । दव्वस्त पमाणं दव्त्रयमाणं । एवं तप्पुरिससमासे' कीरमाणे दव्वादो पमाणस्स भेदो दुक्कदि, जहा देवदत्तस्स कंबलो त्ति । एत्थ देवदत्तादो कंबलस्सेव भेदो ण, अभेदे वि उप्पलगंधो इच्चेवमादिसु तप्पुरिससमासदंसणादो | अधवा दब्वादो पमाणं केण वि सरूवेण भिण्णं चेव, अण्णहा विसेसिय विसेसण भावाणुवव
कालद्रव्य भी है, पर इतनी विशेषता है कि कालद्रव्य अपने और दूसरे द्रव्योंके परिणमन में साधारण कारण है, अप्रदेशी अर्थात् एकप्रदेशी है और लोकाकाशके जितने प्रदेश हैं उतने ही कालाणु हैं । इसप्रकार ये छह द्रव्य हैं ।
शंका--इन छह द्रव्योंमेंसे यहां प्रकृतमें किस द्रव्यसे प्रयोजन है, अर्थात् किस द्रव्यके द्वारा प्रकृत विषय कहा जायगा ?
समाधान -- सत्प्ररूपणानुयोगद्वार में चौदहों मार्गणास्थानोंके द्वारा जिस जीवद्रव्य के चौदों जीवसमासोंके अस्तित्वका निरूपण कर आये हैं, प्रकृतमें उसी जीवद्रव्य से प्रयोजन है ।
शंका -- यह कैसे जाना ?
समाधान - - ' मिथ्यादृष्टि जीव कितने हैं' इसप्रकार शेष पांच द्रव्यों के परिमाणको छोड़कर एक जीवद्रव्यके परिमाणके निरूपण करनेवाले सूत्रसे यह जाना जाता है कि प्रकृतमें एक जीवद्रव्यसे ही प्रयोजन है, अन्य द्रव्योंसे नहीं ।
जिसके द्वारा पदार्थ मापे जाते हैं या जाने जाते हैं उसे प्रमाण कहते हैं और द्रव्यके प्रमाणको द्रव्यप्रमाण कहते हैं ।
शंका- इसप्रकार 'द्रव्य प्रमाण ' इन दोनों पदोंमें तत्पुरुष समास करने पर द्रव्यसे प्रमाणका भेद प्राप्त होता है, जैसे 'देवदत्तका कम्बल ' ?
समाधान - देवदत्त से कम्बलका जिसप्रकार भेद है, प्रकृतमें उसप्रकारका भेद नहीं है, क्योंकि, अभेदके रहने पर भी ' उत्पलगन्ध' इत्यादि पदों में तत्पुरुष समास देखा जाता है । इसका यह तात्पर्य है कि ' उत्पलगन्ध ' इत्यादि पदोंमें ' उत्पलस्य गन्धः उत्पलगन्धः ' इत्यादि रूपले तत्पुरुष समास के रहने पर भी जिसप्रकार उत्पलसे गन्धका भेद नहीं होता है, उसी प्रकार यहां पर भी द्रव्यसे प्रमाणका सर्वथा भेद नहीं समझना चाहिये ।
अथवा, द्रव्यसे प्रमाण किसी अपेक्षासे भिन्न ही है । यदि द्रव्यसे प्रमाणका कथंचित् भेद न माना जाय तो द्रव्य और प्रमाणमें विशेष्य-विशेषणभाव नहीं बन सकता है । अथवा,
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