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________________ १० अर्थसंबंधी विशेष सूचना १. पृष्ठ ४७ की गाथा नं. २८ का प्रतियोंमें उपलब्ध पाठको रखते हुए अर्थ दो हारोंके अन्तरसे एक हारमें भाग देने पर जो लब्ध आता है उससे भाजित पूर्व लब्धका, तथा दोनों हारोंसे अलग अलग भाजित भाज्यके भजनफलोंका अन्तर हानिवृद्धिरूप होता है । ( अर्थात् उपर्युक्त दोनों प्रक्रियाओंका फल बराबर ही होता है और समानरूपसे घटता बढ़ता है | ) उदाहरण (बीजगणितसे ) - (१) यदि स से ब छोटा है तो (२) यदि स से ब बड़ा है तो (अंकगणितसे ) - भाज्य = अ; हार ( भाजक ) = ब और स; पूर्वलब्ध Jain Education International भाज्य = पूर्वलब्ध ९ ३ ३६; हार ( भाजक ) = ३; ३६ ६ अ ब ६ अ स - = ६; दूसरा लब्ध अ स अ ब = २; ६ - ४ = २. = क÷ = ६ और ९; ३६ ९ = क : अ ब स स - ब = ४; हारान्तर ९ = क स ब - स For Private & Personal Use Only - २. पृष्ठ ५०-५१ परके पश्चिम विकल्पका स्पष्टीकरण पृ. ५०-५१ पर मूलमें जो पश्चिमविकल्प बतलाया गया है, उसके सम्बन्धमें हमारे सन्मुख दो आपत्तियां उपस्थित हुईं, कि एक तो वह धवलाकार द्वारा स्वीकृत अंकसंदृष्टिसे घटित नहीं होता, और दूसरे प्रकृतमें उसका कोई फल नहीं दिखाई देता । इन्ही आपत्तियोंको दूर करने के लिये मूल में प्राप्त पाठ रखकर भी अनुवाद में हमने उस पाठका संशोधन सुझाया है । तथापि एक तरह से बीजगणित द्वारा मूलमें दिया हुआ गणित सिद्ध भी हो सकता है । जैसे - ६ = ३. मानलो, जीवराशि क; मिथ्यादृष्टिराशि = अ; सिद्धतेरसराशि = ब; अ = क – ब. अब चूंकि क अनन्तराशि है, अतएव - क + १ = क; क - १ = क॰ www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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