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________________ पृष्ठन. ४५३ ४५४ षटखंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय स्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुण- | इस विषयका ऊहापोहात्मक स्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें शंका-समाधान जीवोंका प्रमाण व अवहारकाल ४३९३१४ चक्षुदर्शनी जीवों में सासादन३०० अवधिज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय क्षीणकषाय गुणस्थानतक के गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें जीवोंका प्रमाण जीवोंका प्रमाण ४४१ ३१५ अचक्षुदर्शनियों में मिथ्यादृष्टि ३०१ मनःपर्ययज्ञानियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थानतकके जीवोंका प्रमाण गुणस्थानतक जीवोंका प्रमाण ४४१ व ध्रुवराशि ४५५ ३०२ केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली ३१६ अवधिदर्शनी जीवोंका प्रमाण व और अयोगिकेवलीजिनोंका प्रमाण ४४२ अवहारकाल ४५५ ३०३ ज्ञानमार्गणा सम्बन्धी भागाभाग ४४२३१७ केवलदर्शनी जीवों का प्रमाण . ३०४ ज्ञानमार्गणासम्बन्धी अल्पबहुत्व ४४४/३१८ श्रुतदर्शन और मनःपर्ययदर्शन ८ संयममार्गणा ४४७-४५२| | क्यों नहीं होता है, इस शंका ३०५ संयमी जीवोंमें प्रमत्तसंयत गुण का समाधान ४५६ स्थानसे लेकर अयोगिकेवली |३१९ ज्ञानमार्गणासम्बन्धी भागाभाग ४५७ गुणस्थानतकका प्रमाण ४४७,३२० ज्ञानमार्गणासम्बन्धी अल्पबहुत्व ४५८ ३०६ सामायिक और छेदोपस्थापना १० लेश्यामागेणा ४५९--४७१ संयतोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे ३२१ कृष्ण, नील और कापोत लेश्यालेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान वालों में मिथ्याडष्टि गुणस्थानसे तक प्रत्येक गुणस्थानका प्रमाण लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणघ दोनों संयतोंके भेदाभेद विष स्थानतक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती यक शंकाका समाधान ४४७ जीवोंका प्रमाण व ध्रुवराशि ४.९ ३०७ परिहार विशुद्धिसंयमवाले प्रमत्त ३२२ तेजोलेश्यावाले जीवों में मिथ्याऔर अप्रमत्तसंयतोंका प्रमाण ४४९ दृष्टि जीवोंका प्रमाण व अवहार३०८ सूक्ष्मसाम्परायसंयमवाले उप ४६१ शमक व क्षयकोंका प्रमाण ४४९ ३२३ तेजोलेश्यावाले जीवों में सासा९ यथाख्यातसंयमी, संयमासंयमी दन सम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे और असंयमी जीवोंका पृथक लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थानपृथक् प्रमाण तकके जीवोंका प्रमाण ४६२ ३१. संयममार्गणासम्बन्धी भागाभाग ४५१/३२४ पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्या३११ संयममार्गणासम्बन्धी अल्पबहुत्व ४५१/ दृष्टि जीवोंका प्रमाण व अवहार ९ दर्शनमार्गणा ४५३-४५९/ काल ३१२ चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीवोंका ३२५ पनलेश्यावाले जीवों में सासादन द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण ४५३/ गुणस्थानतकके जीवोंका प्रमाण ४६३ ३१३ चक्षुदर्शनी जीव किसे कहते हैं, ३२६ शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें मिथ्या ४६३ ४५३/ स्थानसे लेकर अप्रमत्त चक्षुदर्शनी जीव किस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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