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________________ द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची ऋम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. प्रमाण ४१४ ६ कषायमार्गणा ४२४-४३६ २७५ स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके २८८ क्रोध, मान, माया और लोभकम होनेका कारण कषायी जीवों में मिथ्यादृष्टि गुण स्थानसे लेकर संयतासंयत गुण६ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर स्थान तक प्रत्येक गुणस्थानमें अनिवृत्तिकरण उपशमक व जीवोंका प्रमाण व अवहारकाल ४२४ क्षपकके सवेदभाग तक स्त्रीवेदियोंका प्रमाण ३१०२८९ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्ति गुणस्थानतक चारों २७७ पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण कषायवाले जीवोंका प्रमाण ४२८ व अवहारकाल २९० लोभकषायी उपशमक, व क्षपक २७८ सासादनसम्यग्दृष्टिसेलेकर अनि सुक्ष्मसाम्परायिकसंयतोंकाप्रमाण ४२९ वृत्तिकरण उपशमक व क्षपकके २९१ अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषायसवेद भाग तक पुरुष वेदियोंका वीतरागछद्मस्थाका प्रमाण और प्रमाण व अवहारकाल द्रव्यकर्म चार प्रकारका होनेसे २७९ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर चार भेदों में विभक्त. मूल उपसंयतासंयत तकके नपुंसक वेदि शान्तकषायराशि प्रत्येक मूलोघयोंका प्रमाण व अवहारकाल प्रमाणको कैसे प्राप्त होती है, २८० प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर इस शंकाका समाधान अनिवृत्तिकरण उपशमक क्षपकके २९२ अकषायी क्षीणकषायतिरागसवेद भाग तक नपुंसकवेदियोंका छद्मस्थ और अयोगिकेवली प्रमाण जिनोंका प्रमाण २८१ स्त्रीवेदी प्रमत्तादिगशिसे भी २९३ अकषायी सयोगिकेवली जिनोंका नपुंसकवेदी प्रमत्तादिराशिके प्रमाण ४३१ संख्यात भाग होनेका कारण । २९४ कषायमार्गणासम्बन्धी भागाभाग ४३१ २८२ अपगतवेदी उपशामकोंका प्रवेश- २९५ कषायमार्गणासम्बन्धी अल्पकी अपेक्षा प्रमाण बहुत्व ४३३ २८३ उपशान्तकषायजीवके उपशामक ७ ज्ञानमार्गणा ४३६-४४६ सक्षा कैसे है, इस शंकाका २९६ मत्यज्ञानी और श्रुताशानी मिथ्यासमाधान दृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि २८४ अपगतवेदी उपशामकोका संचय जीवोंका प्रमाण, ध्रुवराशि और * कालकी अपेक्षा प्रमाण अवहारकाल २८५ अपगतवेदी तीनों क्षपक और २९७ विभंगवानी मिथ्यादृष्टि जीवोंका अयोगिकेवलियोंका प्रमाण प्रमाण व अवहारकाल २८६ अपगतवेदी सयोगिकेवलियोंका २९८ विभंगवानी सासादनसम्यग्दृष्टि प्रमाण ४२१) जीवोंका प्रमाण ४३८ २८७ वेदमार्गणासम्बन्धी भागाभाग व २९९ मति, श्रुत, और अवधिनानी अल्पबहुत्व ४२१/ जीवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुण ४३० ४३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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