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________________ ३९७ ३९७ ३९९ ४०० षट्खंडागमको प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय ४ योगमार्गणा ३८६-४१३ दनसम्यग्दृष्टियोंका प्रमाण और २४८ पांचों मनोयोगी तथा सत्य, अवहारकाल उभय और असत्य इन तीन २६१ औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतवचनयोगी जीवोंका प्रमाण सम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली २४९ उक्त आठ राशियां देवों के जिनका प्रमाण संख्यातवें भाग क्यों हैं ? इसका २ वैक्रियिककाययोगी मिथ्याष्टिसमर्थन योंका प्रमाण व अवहारकाल २५० सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे ३ वैक्रियिककाययोगी सासादनलेकर संयतासंयततक उक्त आठो सम्यग्दृष्टि,और असंयतसम्यग्दृष्टि राशियोंका प्रमाण तथा उसका जीवराशिका प्रमाण व अवहार काल ओघप्ररूपणाके समान कथन करने में हेतु ... २६४ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्या दृष्टियोंका प्रमाण २५१ प्रमत्तसंयतसे लेकरसयोगिकेवली तक उक्त आठोंराशियोंकाप्रमाण २६५ वैक्रियिकमिश्रकाययोगीसासादन सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि २५२ प्रमत्तसंयतादिगुणस्थानोंमें आठ राशियोंका प्रमाण ओघसमान जीवोंका प्रमाण व अवहारकाल न कहनेका कारण २६६ आहारककाययोगी प्रमत्तसंयतों का प्रमाण २५३ वचनयोगी और अनुभयवचन २६७ आहारकमिश्रकाययोगी प्रमत्तयोगी मिथ्यादृष्टिजीवोंका द्रव्य, संयतोंका प्रमाण व मतान्तर काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण परिहार ४०२ २५४ सासादनादि गुणस्थानवर्ती उक्त १०.२६८ कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टिजीवों . राशियों का प्रमाण का प्रमाण व ध्रुवराशि ४०२ २५५ स्व-भेद-युक्त मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीवोंके २६९ कार्मणकाययोगी सासादनसम्यअवहारकाल और जीवराशियां । ग्दृष्टि और असंयतसंम्यग्दृष्टि जीवेंका प्रमाण व अवहारकाल ४०३ २५६ काययोगी और औदारिककाय कार्मणकाययोगी सयोगिजिनका योगी मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण प्रमाण ४०४ २५७ सासादनगुणस्थानसे लेकर २७१ योगमार्गणा सम्बन्धी भागाभाग ४०४ सयोगिकेवली तक काययोगी और औदारिककाययोगियोंका २७२ योगमार्गणा सम्बन्धी अल्पबहुत्व ४०८ प्रमाण, धुवराशि तथा अवहार ५ वेदमार्गणा ४१३-४२४ काल ३९५२७३ स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण, २५८ औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्या देवियोंके प्रमाणकी खुदाबंधसे दृष्टियोंका प्रमाण और ध्रुवराशि सिद्धि और स्त्रीवेदियोंका अव२५९ औदारिककाययोगराशिके संख्या हारकाल ६१३ तवें भाग औदारिकामिश्रकाय- २७४ सासादन सम्यग्दृष्टिसे लेकर योगराशके होने में हेतु संयतासंयत गुणस्थान तक २६० औदारिकमिश्रकाययोगी सासा प्रत्येक गुणस्थानमें स्त्रीवेदियोका ३ भमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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