SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठ न. ३५१ ३५६ ३४२ द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची फ्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय लेकर इस विषयमें अनेक मता- | खंडित आदिसे राशिका कथन न्तरोंका उल्लेख, और कौन मत २३५ बादरतैजस्कायिक पर्याप्तराशिका पूर्व परंपरागत है, इसका सका प्रमाण समर्थन ३३७/२३६ बादरवायुकायिक पर्याप्तराशिका २२३ प्रकारान्तरसे तैजस्कायिकराशिके उत्पन्न करनेका विधान ३३९/ द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण २२४ खंडित आदिके द्वारा तैजस्कायिकराशिका वर्णन ११.२३७ बादरवायुकायिक पर्याप्तराशिका २२५ तेजस्कायिकराशिसे पृथिवी, जल प्रमाण और वायुकायिकराशिके उत्पन्न २३८ भेद-प्रभेदयुक्त वनस्पतिकायिक करने की प्रक्रिया, तथा इन्हीं तीनों जीवोंका द्रव्य-प्रमाण राशियोंके अवहारकाल 'जिनका शरीर वनस्पतिरूप २२६ प्रकृतोपयोगी करणसूत्र, तथा होता है उन्हें वनस्पतिकायिक उक्त चारों राशियोंके सूक्ष्म, कहते हैं, वनस्पतिकायिकका सूक्ष्मपर्याप्त, सूक्ष्मअपर्याप्त ऐसा अर्थ करनेपर विग्रहगतिमें और बादरराशिसम्बन्धी अवहार स्थित जीवोंको वनस्पतिकायिकत्व काल कैसे प्राप्त होता है, इस शंकाका २२७ बादरतैजस्कायिक आदि राशि समाधान योंके अर्धच्छेद ३४४/२४० भेद-प्रभेदयुक्त वनस्पतिकायिक २२८ बादरतैजस्कायिकराशिकी सत्त जीवोंका काल और क्षेत्रकी अपेक्षा रह प्रकारकी प्ररूपणा प्रमाण २२९ बादरवनस्पति प्रत्येक शरीर- २४१ पूर्वोक्त जीवराशियोंकी धुवराशिकी सत्तरह प्रकारकी प्ररू राशियां पणा, तथा दूसरी बादरराशि- २४२ बसकायिकसामान्य और त्रसयोंकी पूर्वोक्त राशियोंके समान कायिकपर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्ररूपण करनेकी सूचना द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा २३० सप्रतिष्टित और अप्रतिष्ठित प्रमाण . प्रत्येकवनस्पतिमें भेद । ३४७/२४३ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे २३१. सूत्रमें बादरवनस्पतिप्रत्येकशरीर लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक का ही प्रमाण कहा, उनके भेदोंका त्रसकायिक सामान्य और त्रसनहीं, इसका कारण ३४८ __ कायिकपर्याप्तोंका प्रमाण २३२ बादरपृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर लब्ध्यपर्याप्त त्रसकायिकाका अपकायिक पर्याप्त और बादरवन प्रमाण स्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त |२४५ लब्ध्यपर्याप्त सकायिकोंका राशियोंका द्रव्य, काल और प्रमाण लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रियों के क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण રૂટ प्रमाणके समान कहनेसे उत्पन्न २३३ उक्त तीनों राशियों के भागहार ३५० हुई आपत्तिका परिहार २३४ बादरतैजस्कायिक पर्याप्त- २४६ कायमार्गणासम्बन्धी भागाभाग राशिका प्रमाण, अवहारकालव २४७कायमार्गणासम्बन्धी अल्पबहत्व ३४४४ ३५८ ३५९ ३६० ३६२ २४४ ३६२ ३६३ ३६३ ३६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy