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________________ "पृष्ठ नं. द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय २८ क्षेत्रकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टिराशिके गृहीतगृहात और गृहीतगुणकार ५४ मापनेका प्रकार ३२४४ द्विरूपधारामें गृहीत उपरिम विकल्प२९ लोक, जगच्छेणी और राजुका द्वारा मिथ्यादृष्टिराशिकी उत्पत्ति स्वरूप ३३/४५ घनधारामें गृहीत उपरिम विकल्प ३० मध्यलोक-विस्तारके संबंधमें मत- ४६ घनाघनधारामें गृहीत उपरिम भेद तथा धवलाकारका तत्संबंधी विकल्प सयुक्तिक निर्णय ३४-३८/४७ गृहीतगृहीत-उपरिम विकल्पमें ३१ क्षेत्रप्रमाणके प्ररूपणकी सार्थकता ३८/ तीनों धाराओंके द्वारा मिथ्याष्टि३२ भावप्रमाणका स्वरूप व उसके भेद ३८-३९ राशिकी उत्पत्ति ३३ सूत्रमें भावप्रमाणके नहीं कहने में ४८ गृहीतगुणकार उपरिम विकल्पमें तीनों धाराओंके द्वारा मिथ्यावृष्टि ३४ भावप्रमाणकी अपेक्षा खंडित, राशिकी उत्पत्ति भाजित, विरलित और अपहृत ४९ सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर संयनामक गणितकी प्रक्रियाओंके द्वारा तासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक गुणमिथ्यादृष्टिराशिके लाने की विधि ३९ स्थानवी जीवोंका प्रमाण १ वर्गस्थानमें खंडित, आदिके द्वारा ५० सासादनसम्यग्दृष्टियोंका प्रमाण मिथ्यादृष्टिराशिके प्रमाण-निरूपण- ५१ क्षेत्र और कालकी अपेक्षा सासाकी प्रतिज्ञा दनसम्यग्दृष्टियोंके प्रमाणकी प्ररू३६ मिथ्यादृष्टिराशि लाने के लिए ध्रुव पणा नहीं करनेका कारण राशिकी स्थापना व उसके द्वारा ५२ कालप्रमाणसंबंधी आवली,उच्छास, खंडित, भाजित, विरलित और ____ स्तोक, लव, नाली, मुहूर्त, भिन्नअपहत विधिओंसे मिथ्याष्टि मुहूर्त और अन्तर्मुहूर्तका स्वरूप राशिका प्रमाण-प्ररूपण ४१ ५३ एक मुहूर्त में प्राणोंकी संख्यासिद्धि *३७ मिथ्यादृष्टिराशिका प्रमाण तथा और मतान्तरका खंडन तत्संबंधी गणितका शास्त्रीय ५४ असंयतसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्याकारण ४२-४६ दृष्टि,सासादनसम्यग्दृष्टि और संय३८ गणितसंबंधी नौ करण-गाथाएं ४६-४९ तासंयत अवहारकालोका कथन । ३९ सर्पजीवराशिमेंसे मिथ्यादृष्टि और ५५ ओघसम्यग्मिथ्यादृष्टि, सासादनसिद्ध-तेरस गुणस्थानोंके प्रमाण सम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंका पृथक करनेकी निरुक्ति अवहारकाल आवलीके असंख्या४० विकल्पके अधस्तन और उपरिम तवें भाग न होकर 'असंख्यात . भेद, तथा वर्गधारामें मिथ्यादृष्टि आवली प्रमाण है। इस बातका राशि लानेके लिए अधस्तन समर्थन व विरोध-परिहार विकल्पकी असंभवता | ५२/५६ सासादनसम्यग्दृष्टि आदि राशि४१ घनधारामें अधस्तन विकल्प योंके अनबस्थित रहने पर भी उनके ४२ घनाघनधारामें अधस्तन विकल्प ५३| निश्चित प्रमाण लानेके लिए ४३ उपरिम विकल्पके तीन भेद-गृहीत. निश्चित भागहारका समर्थन . .. .. 190 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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