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________________ पृष्ठ नं. १८ द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय कानन्त, एकानन्त, उभयानन्त, विषयकी उत्थानिका १-१० विस्तारानन्त,सर्वानन्त औरभावा नन्तके भेद और स्वरूप १ द्रव्यप्रमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश | १९ प्रकृतमें गणनानन्तसे प्रयोजनकी भेद-कथन सिद्धि और शेष दश अनन्तोंके २ द्रव्यशब्दकी निरुक्ति और भेट कथन करनेका हेतु १६-१७ ३ जीवद्रव्यका साधारण और असा- २० गणनानन्तके तीन भेद-परीत, युक्त धारण लक्षण और अनन्तानन्त ४ अजीवद्रव्यके रूपी और अरूपी २१ मिथ्यादृष्टियोंके प्रमाणमें विवक्षित भेद वा उनके लक्षण अनन्तानन्तका प्रतिपादन । ५ द्रव्यप्रमाणानुगममें प्रकृत द्रव्यका २२ अनन्तानन्तके जघन्यादि तीन भेद, निर्देश तथा मिथ्याष्टियोंके प्रमाणमें ६ प्रमाण शब्दकी निरुक्ति तथा द्रव्य मध्यम अनन्तानन्तके ग्रहणका प्रमाण शब्दका समास-विच्छेद ४ परिकर्मके प्रमाणपूर्वक प्रतिपादन ७ द्रव्यका लक्षण २३ अथवा, मिथ्यादृष्टिराशि तीन वार ८ छहों समासोंके लक्षण व उदाहरण ६-७ वर्गित-संवर्गितराशिसे अनन्तगुणी ९ संख्याकी सर्वथा एकरूपताका तथा छह द्रव्यप्रक्षिप्तराशिसे अनपरिहार न्तगुणी हीन है, इसका सोप१० द्रव्यप्रमाणानुगमका अर्थ पत्तिक प्रतिपादन और इन राशि११ निर्देशका स्वरूप और उसके भेदों योंके उत्पत्तिक्रमका प्ररूपण १९-२६ का स्पष्टीकरण ८-१० २४ कालकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव राशिका निरूपण, तथा क्षेत्रओघसे द्रव्यप्रमाणनिर्देश १०-१०१ प्रमाणके पूर्व कालप्रमाणके प्रति१२ मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण पादनकी सार्थकता १.२५ कालकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव. प्ररूपण राशिकी गणना करनेका प्रकार १३ अनन्तके ११ भेद, नामानन्त और तथा इस गणनामें केवल अतीतस्थापनानन्तका स्वरूप कालके ग्रहणका प्रतिपादन २८-२९ १४ द्रव्यानन्तके भेद २६ अतीतकालसे मिथ्याष्ट्रिराशि बड़ी १५ आगम और आप्तका लक्षण है, इसका सोलह-प्रतिक अल्प१६ आगम द्रव्यानन्तका स्वरूप - बहुत्वसे समर्थन ३०-३१ १७ नोआगम द्रब्यानन्तके भेद, उनका क्षेत्रकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टिराशिका स्वरूप और तद्विषयक शंका प्रमाण-प्ररूपण, तथा क्षेत्रप्रमाणके समाधान १३-१५ पूर्व भावप्रमाणके प्रतिपादन न कर१८ शाश्वतानन्त, गणनानन्त अप्रदेशि नेका कारण ३२ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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