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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
योग किया है, जिससे तत्कालीन गणितशास्त्रकी अवस्थाका हमें बहुत अच्छा परिचय मिल जाता है । धवलाकारसे शताब्दियों पूर्व रचे गये भूतबलि आचार्यके सूत्रोंमें जो गणितशास्त्रसंबंधी उल्लेख हैं, वे भी बहुत महत्वपूर्ण हैं । उनमें एकसे लगाकर शत, सहस्र, शतसहस्र ( लक्ष ), कोटि, कोटाकोटाकोटी व कोटा कोटाकोटाकोटी तक की गणना, व उससे भी ऊपर संख्यात, असंख्यात, अनन्त और अनन्तानन्तका कथन, गणितकी मूल प्रक्रियाओं जैसे सातिरके, हीन, गुण और अवहार या प्रतिभाग अर्थात् जोड़ बाकी, गुणा, भाग, वर्ग और वर्गमूल, तथा प्रथम, द्वितीय आदि सातवें तक वर्ग व वर्गमूल, घन, अन्योन्याभ्यास आदिका खूब उपयोग किया गया है । क्षेत्र और कालसंबंधी विशेष गणना - मानों जैसे अंगुल, योजन, श्रेणी, जगप्रतर व लोक तथा आवली, अन्तर्मुहूर्त, अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी, पल्योपम, तथा विष्कंभ विष्कंभसूची ( पंक्तिरूप क्षेत्रआयाम ), इन सबका भी सूत्रों में खूब उपयोग पाया जाता है, जिनके स्वरूपपर ध्यान देनेसे आजसे लगभग दो हजार वर्षपूर्वके एतद्देशीय गणितज्ञानका अच्छा दिग्दर्शन मिल जाता है ।
धवलाकारकी रचनामें असंख्यात, असंख्यातासंख्यात तथा अनन्त और अनन्तानन्तके आन्तरिक प्रभेदों और तारतम्योंका और भी सूक्ष्म निदर्शन किया गया है, जिसका स्वरूप हम ऊपर दिखा आये हैं । इस विषय में धवलाकारद्वारा अर्धच्छेद और वर्गशलाकाओंके परस्पर संबंधका तथा वर्गित - संवर्गित राशिका जो परिचय दिया गया है वह गणितकी विशेष उपयोगी वस्तु है । (देखो पृ. १८-२६) । सर्व जीवराशिका उसके अन्तर्गत राशियों में भाग-प्रविभाग दिखानेके लिये धवलाकार
ध्रुवराशि (भागहार विशेष ) स्थापित करनेकी क्रिया और उससे भाग देनेकी प्रक्रियाएं जैसे खंडित, भाजित, विरलित और अपहृत विस्तारसे दी हैं, जो गणितज्ञोंको रुचिकर सिद्ध होंगी। (देखो पृ. ४१ ) । ध्रुवराशिसे भाग देनेपर विवक्षित मिथ्यादृष्टिराशि क्यों आती है, इसका कारण समझाने में भाज्य और भाजक हानि-वृद्धिक्रमका जो तारतम्य और संबंध बतलाया गया है और क्षेत्र - गणितसे समझाया गया है, वह गणितशास्त्रका एक बहुमूल्य भाग है । (देखो पृ. ४२ आदि) । अवतरण गाथा २४ से ३२ तककी नौ गाथाओं में इसी संबंध के बड़े सुंदर नियम गुरुरूपमें उद्धृत किये गये हैं और उनका उपयोग विवक्षित राशियां लानेके लिये यथासंभव और यथास्थान भागके अनेक विकल्पोंमें करके बतलाया गया है । अधस्तन विकल्पमें निश्चित भाज्य और भाज़कसे नीचेकी संख्या लेकर वही भजनफल उत्पन्न करके बतलाया गया है, और वह भी द्विरूप अर्थात् वर्गधारामें, अष्टरूप अर्थात् घनधारामें और घनाघनधारा । अर्थात् निश्चित संख्याका प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्गमूल लेकर भाजकको कम कर वही भजनफल उत्पन्न कर दिखाया है । उपरिम विकल्पमें निश्चित भाज्य व भाजकसे ऊपरकी अर्थात् वर्ग, घन व घनाघनरूप राशियां ग्रहण करके वही भजनफल उत्पन्न किया गया है । इस प्रक्रियामें धवला - कारने तीन और विकल्प कर दिखाये हैं, गृहीत, गृहीतगृहीत, और गृहीतगुणकार । गृहीत तो सीधा है, अर्थात् उसमें ऊपरके भाज्य और भाजकके द्वारा निश्चित भजनफल उत्पन्न किया गया है । किन्तु गृहीतगृहीत में निश्चित भजनफल भी एक बड़ी राशिका भाजक बन जाता है और उसके
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