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________________ १,२, १८४. ] दव्वपमाणागमे समत्तमग्गणा अप्पा बहुगपरूवणं [ ४८१ संभवाभावादो । ' तेरसकोडी देसे ' एदीए गाहाए एदस्स वक्खाणस्स किण्ण विरोहो ? होउ णाम । कधं पुण विरुद्धवक्खाणस्स भद्दत्तं ? ण, जुत्तिसिद्धस्स आइरियपरंपरागयस्स एदीए गाहा णाभद्दत्तं काऊण सक्किज्जदि, अइप्पसंगादो | वेदगअसंजद सम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । खइयअसंजदसम्म इडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । उवसमअसंजदसम्म इडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । साससम्म इडिअवहार कालो संखेज्जगुणो । वेदगसम्म इट्ठिसंजदासंजद अवहारकालो असंखेज्जगुणो। उवसमसम्माइट्ठि संजदासंजद अवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवमवहारकालपडिलोमेण णेयव्वं जाव पलिदोषमं ति । तदो खइयसम्माइणि केवलणाणिणो अनंतगुणा । मिच्छाइट्टिणो अनंतगुणा । एवं सम्मत्तमग्गणा गदा । समाधान- चूंकि चरित्रावरण मोहनीयकर्मका क्षयोपशम सर्व सम्यक्त्वों में प्रायः संभव नहीं है, इसलिये यह जाना जाता है कि सर्व सम्यक्त्वोंमें संयतोंसे संयतासंयत और संयतासंयतों से असंयत जीव अधिक होते हैं । शंका- यदि ऐसा है तो ' देशसंयत में तेरह करोड़ मनुष्य हैं' इस गाथा के साथ इस पूर्वोक्त व्याख्यानका विरोध क्यों नहीं आ जायगा ? समाधान - यदि उक्त गाथार्थके साथ पूर्वोक्त व्याख्यानका विरोध प्राप्त होता है तो होभो । शंका - तो इस प्रकारके विरुद्ध व्याख्यानको समीचीनता कैसे प्राप्त हो सकती है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, जो युक्तिसिद्ध है और आचार्य परंपरा से आया हुआ है उसमें इस गाथासे असमीचीनता नहीं लाई जा सकती, अन्यथा अतिप्रसंग दोष आ जायगा । वेदकसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंसे असंख्यातगुणा है । क्षायिकअसंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल वेदकअसंयतसम्यग्दृष्टियोंके भवहारकाल से असंख्यातगुणा है । उपशमअसंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल क्षायिकअसंयतसम्यग्डष्टियों के अपहारकाल से असंख्यातगुणा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल उपशम असंयत सम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकाल से संख्यातगुणा है । वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयताका अबहारकाल सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयताका अवहारकाल वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हीं उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंका द्रव्य उन्हीं के अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार अवहारकालके प्रतिलोमक्रमसे पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे क्षायिक सम्यग्दष्टि केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं। मिथ्यादृष्टि जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि केवलशांनियोंसे अनन्तगुणे हैं। इसप्रकार सम्यक्त्वमार्गणा समाप्त हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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