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________________ ४८० ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं संखेज्जगुणं । पलिदोवममसंखेज्जगुणं । केवलणाणिणो अनंतगुणा । सव्वपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा उवसमसम्माइट्टिणो चत्तारि उवसामगा । तत्थेव खइयसम्माइडिणो संखेज्जगुणा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्त संजदउवसमसम्माइट्टिणो संखेज्जगुणा । कारणं, चारितमोहणीयखवणकालादो उवसमसम्मत्त कालस्स संखेज्जगुणत्ता । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसजदा खइयसम्माइट्टिणो संखेज्जगुणा । पमत्त संजदा संखेजगुणा । वेदगसम्माइट्ठिअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्ता संखेज्जगुणा । खइयसम्माइट्ठिसंजदासंजदा संखेज्जगुणा (पमत्तसंजदाणं संखेज्जभागमेत्तपमत्तसंजदवेदगसम्माइट्ठीहिंतो कधं मणुस संजदासंजदाणं संखेजदिभागमे तखइयसम्माइट्ठिसंजदासंजदाणं संखेज्जगुणतं ? ण, सव्वसम्मत्तेसु संजदेहिंतो देससंजदाणं देस संजदेहिंतो असंजदाणं बहुत्तुवलंभादो । तं पि कुदो ? चारित्तावरणखओवसमुहस सव्वसम्मत्ते सुपायण है । इससे उन्हींका द्रव्य असंख्यातगुणा है । इससे पल्योपम असंख्यातगुणा है । इससे केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं । [ १, २, १८४. सर्वपरस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- उपशमश्रेणीके चारों गुणस्थानवर्ती उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे स्तोक हैं । उपशमश्रेणीके चारों गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उनसे संख्यातगुणे हैं। क्षपक जीव उपशमश्रेणीके चारों गुणस्थानवर्ती क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । अप्रमत्तसंयत उपशमसम्यग्दृष्टि जीव क्षपक जीवोंसे संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, afta मोहनीयके क्षपण कालसे उपशमसम्यक्त्वका काल संख्यातगुणा है । प्रमत्तसंयत उपशमसम्यग्दृष्टि जीव अप्रमत्तसंयत उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । अप्रमत्तसंयत क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव प्रमत्तसंयत उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । प्रमत्त संयत क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव अप्रमत्तसंयत क्षायिकससम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । वेदकसम्यदृष्टि अप्रमत्तसंयत जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयतों से संख्यातगुणे हैं । वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत जीव वेदकसम्यग्दृष्टि अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयतों से संख्यातगुणे हैं । शंका - प्रमत्तसंयतोंके संख्यातवें भागमात्र प्रमत्तसंयत वेदकसम्यग्दृष्टियों से मनुष्य संयतासंयतों के संख्यातवें भागमात्र क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव संख्यातगुणे कैसे हो सकते हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि, सर्व सम्यक्त्वोंमें संयतोंसे देशसंयत और देशसंयतों से असंयत जीव बहुत पाये जाते हैं, इसलिये मनुष्य संयतासंयतोंके संख्यातवें भागमात्र क्षायिक सम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव प्रमत्तसंयतोंके संख्यातवें भागमात्र वेदकसम्यग्दृष्टियों से संख्यातगुणे बन जाते हैं । शंका - सर्व सम्यक्त्वोंमें संयतोंसे संयतासंयत और संयतासंयतोंसे असंयत बहुत होते हैं, यह कैसे जाना जाता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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