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________________ ४६८ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, १७१ मिच्छाइडीणं सत्थाणं णत्थि रासीदो थोवदरभागहाराभावा । सासणादीण मोघभंगो । सत्थवो तेउलेस्सियमिच्छाइडिअवहारकालो । विक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । सेढी असंखेज्जगुणा । दव्वमसंखेज्जगुणं । पदरमसंखेज्जगुणं । लोगो असंखेज्जगुणो । सासणादीणमोघं । एवं चैव पम्म सुक्कलेस्साणं सत्थाणं वत्तव्यं । सत्थाणं गदं । परत्थापयदं । सव्वत्थोवो काउलेस्सियअ मंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो । सम्मामिच्छाइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो संखेज्जगुणो । तस्सेव दवमसंखेज्जगुणं । एवं यव्त्रं जाव पलिदोवमं ति । तदो काउलेस्सिय मिच्छाइट्टिण अनंतगुणा । एवं णील- किण्हाणं । सव्वत्थोवा तेउलेस्सिय अप्पमत्तसंजदा । पमत्त संजदा संखेज्जगुणा । असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सम्मामिच्छाइडिअवहार कालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्म इडिअवहारकालो संखेज्जगुणो । संजदासंजदअवहार कालो असंखेज्जगुण । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं यव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो तेउ प्रकृत है - कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंके स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है, क्योंकि, कृष्ण, नील और कापोतलेश्यक राशियोंसे उनके भागद्दार स्तोक नहीं हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि आदि के स्वस्थान अल्पबहुत्व ओघ स्वस्थान अल्पबहुत्व के समान हैं । तेजोलेश्यक मिथ्यादृष्टियों का अवहारकाल सबसे स्तोक है। उन्हींकी विष्कंभसूची अवहारकालसे असंख्यातगुणी है । जगश्रेणी विष्कंभसूचीसे असंख्यातगुणी है । द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है जगप्रतर द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । लोक जगप्रतरसे असंख्यात गुणा है । सासादन सम्यग्दृष्टि भादिका स्वस्थान अल्पबहुत्व ओघ स्वस्थान अल्पबहुत्व के समान है । इसीप्रकार पद्मलेश्य और शुक्लेश्या वालों के स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । इसप्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । I अव परस्थानमें अल्पबहुस्व प्रकृत है— कापोतलेश्यक असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अव हारकाल सबसे स्तोक है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंयत सम्यग्दीष्टयों के भवद्वारकालसे असंख्यातगुणा है । सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहारकाल से संख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पक्ष्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे कापातलश्यक मिध्यादृष्टि जीय अनन्तगुणे हैं । इसीप्रकार नील और कृष्णलेश्यक जीवोंके परस्थान अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये I तेजोलेश्यक अप्रमत्तसंयत जीव सबसे स्तोक हैं । प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतों से संख्यात. गुणे हैं। असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवधारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । सासादन. सम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहारकालसे संख्यातगुणा हैं । संयतासंयतका अवहारकाल सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । उन्हींका द्रव्य भवद्दारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपम से 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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