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________________ १, २, १०१.] दव्वपमाणाणुगमे लेस्सामागणाअप्पाबहुगपरूवणं [१६९ लेस्सियमिच्छाइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो । उवरि सत्थाणभंगो । एवं पम्मलेस्साए । सुकलेस्साए सव्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा। खवगा संखेज्जगुणा। सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। असंजदसम्माइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो। मिच्छाइटिअवहारकालो संखेज्जगुणो । सम्मामिच्छाइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो। सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो संखेज्जगुणो। संजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तस्सेव दव्यमसंखेज्जगुणं । एवमवहारकालपडिलोमेण णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । परत्थाणं गदं । सयपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा। खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा। सुक्कलेस्सियअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पम्मलेस्सियअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेजगुणा । तेउलेस्सियअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्ससंजदा संखेज्जगुणा । तेउलेस्सियअसंजदसम्माइडिअवहारकालो असंखेजगुणो। सम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेजगुणो। सासणसम्मा तेजोलेश्यक मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। इसके ऊपर स्वस्थान अस्पबहुत्वके समान कथन करना चाहिये । इसीप्रकार पद्मलेश्याके परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। शुक्ललेश्यामें चारों उपशामक सबसे स्तोक हैं। क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवली जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है। मिथ्यादृष्टियोंका अपहारकाल असंयतसम्यग्दष्टि अघहारकालसे संख्यातगुणा है। सम्यग्मिथ्याटियोंका अवहारकाल मिथ्याटियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सम्यग्मिथ्याष्टियोंके भवहारकालसे संख्यातगुणा है। संयतासंयतोंका अवहारकाल सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अधहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार अबहारकालके प्रतिलोम क्रमसे पल्योपमतक ले जाना चाहिये । इसप्रकार परस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। भव सर्व परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- चारों उपशामक सबसे स्तोक हैं। क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । सयोगिकेवली संख्यातगुणे हैं। शुक्ललेश्यक अप्रमत्तसंयत जीव संयोगियोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुगे हैं। पालेश्यक अप्रमत्तसंयत जीव शुक्ललेश्यक प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। पद्मलेश्यक प्रमत्तसंयत जीष पालेश्यक अप्रमत्तसंयत जीवोंसे संख्यातगुणे हैं। तेजोलेश्यक अप्रमत्तसंयंत जीब पचलेश्यक प्रमत्तसंयत जीवोंसे संख्यातगुणे हैं । तेजोलेश्यक प्रमससंयत जीव तेजोलेश्यक अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। तेजोलेश्यक असंयतसम्यग्दृष्टियोका अवहारकाल तेजोलेश्यक प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है। सम्यग्मिथ्याधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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