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१, २, १६९.] दव्वपमाणाणुगमे लेस्सामग्गणापमाणपरूवणं
[१६३ सुगममेदं सुत्तं । एदस्स अवहारकालो वुच्चदे। पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीअवहारकाले संखेज्जरूवेहि गुणिदे सणिपंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणमवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरवेहि गुणिदे सणिपंचिंदियतिरिक्खतेउलेस्सियमिच्छाइट्ठीणमवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे पम्मलेस्सियमिच्छाइट्ठीणमवहारकालो होदि।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा ति ओघ ॥१६७॥ एदस्स वि सुत्तस्स अत्थो सुगमो । पमत्त-अप्पमत्तसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया, संखेजा ॥१६८॥
तेउलेस्सियाणं संखेज्जदिभागमेत्ता हवंति । कुदो ? पम्मलेस्साए' सह गदजीवाणं पउरं संभवाभावादो। .. सुकलेस्सिएसु मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासजदा ति दव्वपमाणेण केवडिया, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण ॥ १६९ ॥
यह सूत्र सुगम है। अब पद्मलेश्यासे युक्त मिथ्यादृष्टि जीवराशिके अवहारकालका कथन करते हैं-पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर संशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर संधी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तेजोलेश्यावाले मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर पनलेश्यावाले मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है।
पालेश्यावाले जीव सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें ओपनरूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ १६७ ॥
इस सूत्रका भी अर्थ सरल है।
पालेश्यावाले प्रमत्तसंयत जीव और अप्रमत्तसंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ १६८ ॥
पनलेश्याघाले प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव तेजोलेश्यावाले प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण होते हैं, क्योंकि, पद्मलेश्यासे युक्त प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानको प्राप्त हुए जीव प्रचुर नहीं होते हैं। . शुक्ललेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक
१ प्रतिषु लेस्सा' इति पाठः ।
२ शुक्ललेश्या मिध्यादृष्टयादयः संयतासंयतान्ताः पल्पोपमासंख्येयभागप्रमिताः । स. सि. १,८. पल्लासंसेज्जमागया मुक्का। गो. जी. ५४२.
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