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४६२) छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, २, १६१. लेस्सियामिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि । सेसं जोइसियभंगो ।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा त्ति ओघं ॥ १६४॥
छसु लेस्सासु द्विदओघअसंजदसम्माइद्वि-सम्मामिच्छाइहि-सासणसम्मादिट्ठीहि सरिसो एकाए तेउलेस्साए द्विदरासी कधं होदि ? ण, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागतेण सरिसत्तमवेक्खिय ओघोवएसादो।
पमत्त-अप्पमत्तसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया, संखेज्जा ॥१६५॥ ओघरासिपमाणं ण पूरेदि त्ति जं बुत्तं होदि ।
पम्मलेस्सिएसु मिच्छाइट्टी दव्वपमाणेण केवडिया, सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोगिणीणं संखेज्जदिभागो ॥ १६६ ॥
तेजोलेश्यासे युक्त मिथ्यादृष्टि जीवराशिका अवहारकाल होता है। शेष कथन ज्योतिषी देवोंके कथनके समान है।
तेजोलेश्यासे युक्त जीव सासादनसम्यग्दृष्टि गुण स्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानमें ओघप्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥ १६४ ॥
शंका- ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि राशि, ओघ सम्यग्मिथ्यादृष्टिराशि और ओघ सासादनसम्यग्दृष्टिराशि छहों लेश्याओं में स्थित है, अतएव उसके साथ केवल तेजोलेश्यामें स्थित असंयतसम्यग्दृष्टिराशि, सम्यग्मिथ्यादृष्टिराशि और सासादनसम्यग्दृष्टिराशि समान कैसे हो सकती है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, पल्योपमके असंख्यातवें भागत्वकी अपेक्षा उक्त दोनों राशियोंमें समानता देखकर तेजोलेश्यासे युक्त सासादनसम्यग्दृष्टि आदि राशिका ओघरूपसे उपदेश किया है।
तेजोलेश्यासे युक्त प्रमत्तसंयत जीव और अप्रमत्तसंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ १६५ ॥
उक्त दो गुणस्थानों में तेजोलेश्यासे युक्त जीवराशि ओघप्रमाणको पूर्ण नहीं करती है, यह इस सूत्रमें संख्यात पदके देनेका अभिप्राय है।
पपलेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने है ? संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ १६६ ।।
प्रमाप्रमत्तसंयताः संख्येयाः । स. सि. १,८.
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