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________________ छक्खंडागमे जीवहाणं १५.1 [१, २, १५२. सत्तादी छकंता दोणवमझा य होति परिहारा । सत्तादी अटुंता णवमझा सुहुमरागा दु ॥ ७९ ॥ जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदेसु चउट्ठाणं ओघं ॥ १५२॥ चउट्ठाणमिदि. कधमेगवयणणिदेसो ? ण, चउण्हं पि जादीए एगत्तमवलंबिय सधोवदेसादो । सेसं सुगमं । संजदासजदा दव्वपमाणेण केवडिया, ओघं ॥ १५३ ॥ सुगममिदं सुत्तं । असंजदेसु मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति दव्वपमाणेण केवडिया, ओघं ॥ १५४ ॥ चदुण्हमसंजदगुणट्ठाणाणं ओघचदुगुणहाणेहिंतो अविसिट्ठाणमोघत्तं जुञ्जदे । एत्थ जिस संख्याके आदिमें सात, अन्तमें छह और मध्यमें दोवार नौ हैं उतने अर्थात् छह हजार नौसौ सत्तानवें परिहारविशुद्धिसंयत जीव हैं। तथा जिस संख्याके आदिमें सात, भन्तमें आठ और मध्यमें नौ है उतने अर्थात् आठसौ सत्तानवें सूक्ष्मरागवाले जीव हैं ॥७९॥ यथाख्यात विहारशुद्धिसंयतोंमें ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवी जीवोंका प्रमाण ओघप्ररूपणाके समान है ॥ १५२ ॥ शंका-सूत्रमें 'चउढाणं' इसप्रकार एकवचन निर्देश कैसे बन सकता है ? समाधान नहीं, क्योंकि, जातिकी अपेक्षा एकत्वका अवलम्बन लेकर चारों गुणस्थानोंका एक वचनरूपसे उपदेश दिया है । शेष कथन सुगम है। संयतासंयत जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? ओघप्ररूपणाके समान पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं ॥१५३ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानतक जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? सामान्य प्ररूपणाके समान हैं ॥ १५४ ॥ असंयतसंबन्धी चारों गुणस्थान ओघ चारों गुणस्थानोंके समान हैं, इसलिये असंयत चारों गुणस्थानोंके प्रमाणके ओघपना बन जाता है। अब यहां पर अवहारकालकी उत्पत्ति १ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयताः सामान्योक्तसंख्याः । स. सि १, ८. २ संयतासंयताः सामान्योक्तसंख्याः । स. सि. १, ८. पल्लासंखेज्जदिमं विरदाविरदाण दव्वपरिमाणं ॥ गो. जी. ४८१. ३ असंयताश्च सामान्योक्तसंख्याः । स. सि. १, ८. पुवुत्तरासिहीणा संसारी अविरदाण पमा ॥ गो. नी. ४८१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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