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________________ १४०] छक्खंडागमे जीवहाणं [२, १, १५४. कालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदे (मिस्समदि-सुदअण्णाणि-) सम्मामिच्छाइडिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं चेव पक्खित्ते मिस्सतिणाणिसम्मामिच्छाइडिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे मदि-सुदअण्णाणिसासणसम्माइडिअवहारकालो होदि। तम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते विहंगणाणिसासणसम्माइडिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे आभिणियोहियणाणि-सुदणाणिसंजदासजदअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण गुणिदे ओहिणाणिसंजदासंजदअवहारकालो होदि । अहवा ओघअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते तिणाणिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलिएाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे मिस्सतिणाणिसम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे तिणाणिसासणसम्माइडिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेअदिभाएण गुणिदे दुणाणिअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे मिस्सदुणाणिसम्मामिच्छाइट्टिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजरूवेहि गुणिदे दुणाणिसासणसम्माइडिअवहारकालो होदि। तम्हि आवलियाए असंखेजदि इस अवधिज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आघलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर मिश्र दो ज्ञानी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असं. ख्यातवें भागले भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी अवहारकालमें मिला देने पर मिश्र तीन सानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर मत्यज्ञानी और श्रुताशानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी अवहारकाल में मिला देने पर विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतशानी संयतासंयतोंका अवहारकाल होता है। इसे आवलोके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर अवधिज्ञानी संयतासंयतोंका अवहारकाल होता है । अथवा, ओघ असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकालमें मिला देने पर तीन ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दप्रियांका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर मिश्र तीन ज्ञानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर तीन अज्ञानवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर दो ज्ञानवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर मिश्र दो सानवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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