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छेक्खडागमे जीवद्वाणं
[ १२, १४३.
असंखेजसेढिमेत्ता भवंति । तासि सेठीणं विक्खंभई असंखेज्जघणंगुलमेत्ता । केत्तियताणिघणंगुलाणि १ पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ताणि । तदो देवमिच्छाइट्ठिरासीदो विहंगणाणमिच्छाइट्ठिरासी विसेसाहिओ भवदि । विहंगणाणविरहिददेवापज्जत्तरासिं रइय-तिरिक्ख विहंगणाणीहिंतो असंखेज्जगुणं देवेहिंतो अवणिदे देवेहिं सादिरेयत्तं ण घडदि ति णासंकणिज्जं विहंगणाणिसहस्सावित्तिकरणेण विहंगणाणिदेवा गं गहणादो । वेउव्जियमिस्सरासिस्स सांतरण, देवपज्जत्ताणं सव्त्रकालमसंभवा च । एदस्त अवहारकालो बुच्चदे | तं जहा- देवमिच्छाइट्ठिअवहारकालम्हि एगपदरंगुलं घेत्तूण असंखेज्जखंड करिय तत्थे - खंडमवणिय बहुखंडे तम्हि चेव पक्खिते विहंगणाणिमिच्छाइ अवहारकालो होदि । देण जगपदरे भागे हिदे विहंगणाणिमिच्छाइद्विरासी आगच्छदि ।
साससम्म इट्टी ओघं ॥ १४३ ॥
ओघसासणसम्म इट्ठरासीदो जदि वि एसो सासणसम्माइद्विरासी अप्पणी असं
असंख्यातवें भागप्रमाण होते हुए भी असंख्यात श्रेणीप्रमाण होते हैं । उन असंख्यात श्रेणियों की विष्कंभसूची असंख्यात घनांगुलप्रमाण है । वे असंख्यात घनांगुल कितने होते हैं ? पस्योपमके असंख्यातवें भागमात्र होते हैं । अतएव देव मिथ्यादृष्टि जीवराशि से विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीवराशि विशेष अधिक होती है । नारक और तिर्यच विभंगज्ञानियों से विभंगज्ञान से रहित देव अपर्याप्त राशि असंख्यातगुणी है । अतएव उसे देवराशिमेंसे घटा देने पर देवोंसे साधिक विभंगज्ञानियोंका प्रमाण नहीं बन सकता है, इसप्रकार भी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, प्रकृतमें विभंगज्ञानी शब्दकी आवृत्ति कर लेनेसे विभंगज्ञानी देवोंका ग्रहण किया है। दूसरे वैक्रियिकमिश्र राशि सान्तर होने के कारण देव अपर्याप्त जीव सर्वदा पाये भी नहीं जाते हैं, इसलिये विभंगज्ञानियोंका प्रमाण देवोंसे साधिक है इस कथनमें भी कोई बाधा नहीं आती है ।
अब विभंगज्ञानी मिध्यादृष्टि राशिका अवहारकाल कहते हैं । वह इसप्रकार है- देव मिथ्यादृष्टि राशिमेंसे एक प्रतरांगुलको ग्रहण करके और उसके असंख्यात खंड करके उनमें से एक खंडको निकाल कर बहुभाग उसी देव मिध्यादृष्टि अवहारकाल में मिला देने पर विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इस अवहारकालसे जगप्रतरके भाजित करने पर विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है ।
विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव ओघप्ररूपणा के समान पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ १४३ ॥
ओघ सासादनसम्यग्दृष्टि राशि से यद्यपि यह विभंगज्ञानी सासादन सम्यग्दृष्टि राशि
१ सासादनसम्यग्दृष्टयः पत्यीपमासंख्येयभागमिताः । स. सि. १, ८.
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