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________________ ४३४ ] छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १४०. परत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा कोधकसाइउवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । एवं णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । कोधकसाइमिच्छाइटिरासी अणंतगुणो। एवं माण-माय-लोभाणं पि परत्थाणं वत्तव्यं । अकसाईसु सव्वत्थोवा उवसंतकसाया । खीणकसाया संखेज्जगुणा। अजोगिकेवली तत्तिया चेव । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । सिद्धा अणंतगुणा। सव्यपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा माणकसायउवसामगा। कोधकसायउवसामगा विसेसाहिया । मायकसायउवसामगा विसेसाहिया । लोभकसायउवसामगा विसेसाहिया । माणकसाइखवगा विसेसाहिया । कोधकसाइखवगा विसेसाहिया। मायकसाइखवगा विसेसाहिया । लोभकसाइखवगा विसेसाहिया । एवं जम्मि गुणट्ठाणे चत्तारि कसाया संभवंति तमस्सिऊण भणिदं । अण्णत्थुवसामएहिंतो खवगा दुगुणा चेव । संसारत्था अकसाया संखेज्जगुणा । माणकसायअपमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। कोधकसायअपमत्तसंजदा विसे परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- क्रोधकषायी उपशामक जीव सबसे स्तोक है। क्रोधकषायी क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । क्रोधकषायी अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। क्रोधकषायी प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। क्रोधकषायी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना जाहिये। पत्योपमसे क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण अनन्तगुणा है। इसीप्रकार मान, माया ओर लोभकषायके परस्थान अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये । कषायरहित जीवोंमें उपशान्तकषाय जीव सबले स्तोक हैं। क्षीणकषाय जीव उपशान्तकषाय जीवोंसे संख्यातगुण हैं। अयोगिकेवली जीव उतने ही हैं। सयोगिकेवली जीव अयोगियोंसे संख्यातगुणे हैं । सिद्ध जीव सयोगियोंसे अनन्तगुणे हैं। अब सर्वपरस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- मानकषायी उपशामक जीव सबसे स्तोक हैं। क्रोधकषायी उपशामक जीव मानकषायी उपशामकोंसे विशेष अधिक हैं। मायाकषायी उपशामक जीव मानकषायी उपशामकोंसे विशेष अधिक हैं। लोभकषायी उपशामक जीव मायाकषायी उमशामकोसे विशेष अधिक हैं। मानकषायी क्षपक जीव लोभकषायी उपशामकोंसे विशेष अधिक है। क्रोधकषायी क्षपक जीव मानकषायी क्षपकोंसे विशेष आधक है। मायाकषायी क्षपक जीव क्रोधकषायी क्षपकोसे विशेष अधिक है। लोभकषाया भपक जीव मायाकषायी क्षपकोंसे विशेष अधिक है। इसप्रकार जिस गुणस्थानमें चारों कषाय संभव है उसका आश्रय लेकर कथन किया। अन्यत्र उपशामकोंसे क्षपक ने ही होते हैं । कषाय रहित संसारी जीव लोभकषायी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। मानकषाय अप्रमत्तसंयत जीव संसारी कषाय रहित जीवोंसे संख्यातगुणे हैं। क्रोधकषाय अप्रमत्तसंयत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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