SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२२] ___ छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १३४. संखेज्जगुणो । संजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं पडिलोमेण णेयव्यं जाव असंजदसम्माइट्ठिदव्वं त्ति । तदो पलिदोवममसंखेज्जगुणं । तदो इत्थिवेदमिच्छाइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो । विक्खंभमई असंखेज्जगुणा । सेढी असंखेज्जगुणा। दव्यमसंखेज्जगुणं । पदरमसंखेज्जगुणं । लोगो असंखेज्जगुणो। एवं परिसवेदस्स वि वत्तव्यं । एवं चेव णqसयवेदस्स । णवरि पलिदोवमादो उवरि मिच्छाइट्ठी अंणतगुणा त्ति वत्तव्यं । सव्यपरत्थाणे पयद। सव्वत्थोवा ण_सयवेदुवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । इत्थिवेवसामगा तत्तिया चेव । तेसिं खवगा संखेज्जगुणा । पुरिसवेदुवसामगा संखेजगुणा । तेसिं खवगा संखेज्जगुणा । णवूमयवेदे अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । तम्हि चेव पमत्त. संजदा संखेज्जगुणा । इत्थिवेदे अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । तम्हि चेव पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । पुरिसवेदअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । तम्हि सम्यग्मिध्यादृष्टियों के अवहारकालसे संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदी संयतासंयतोंका अवहारकाल स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हीं संयतासंयतोंका द्रव्य अपने अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसप्रकार प्रतिलोमरूपसे स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके द्रव्य आने तक ले जाना चाहिये। स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टियों के द्रव्यसे पल्योपम असंख्यातगुणा है। पल्योपमसे स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। स्त्रीवेदी मिथ्याष्टि अवहारकालसे स्त्रीवेदियोंकी विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। स्त्रीवेदियोंकी विष्कंभसूचीसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। जगश्रेणीसे स्त्रीवेदियोंका द्रव्य असंख्यातगुणा है। द्रव्यसे जगप्रतर असंख्यातगणा है। जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार पुरुषवेदका भी परस्थान अल्पबहुत्व कहना चाहिये। तथा इसीप्रकार नपुंसकवेदका भी। परंतु इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदियोंका कहते समय पल्योपमके ऊपर मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणे हैं, यह कहना चाहिये। अब सर्व परस्थानमें अस्यबहुत्य प्रकृत है-नपुंसकवेदी उपशामक जीव सबसे स्तोक हैं। नपुंसकवेदी क्षपक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदी उपशामक जीव नपुंसकवेदी क्षपकोंका जितना प्रमाण है उतने ही हैं । स्त्रीवेदी क्षपक जीव स्त्रीवेदी उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदी उपशामक जीव स्त्रीवेदी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदी क्षपक जीव पुरुषवेदी उपशमकोंसे संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदमें अप्रमत्तसंयत जीव पुरुषवेदी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदमें ही प्रमत्तसंयत जीव नपुंसकवेदी अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदी अप्रमत्तसंयत जीव नपुंसकवेदी प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदमें ही प्रमत्तसंयत जीव स्त्रीवेदी अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवली जीव स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। पुरुषधेदी अप्रमत्तसंयत नीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यात. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy