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________________ १, २, १३४.] दव्वपमाणाणुगमे वेदमग्गणाअप्पाबहुगपरूवणं [४२१ सजोगिकेवली ओघं ॥ १३४ ॥ गदत्थमेदं सुत्तं । (भागाभागं वत्तइस्सामो ) सधजीवरासिमणंतखंडे कए बहुखंडा णqसयवेदमिच्छाइट्टिणो भवंति । सेसमणतखंडे कए बहुखंडा अवगदवेदा हवंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा इत्थिवेदमिच्छाइट्ठिणो होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा पुरिसवेदमिच्छाइट्टिणो होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा सव्वेसिमसंजदसम्माइट्ठिणो होति । सेसमोघं । ___ अप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणादिभेएण । सत्थाणे पयदं। इत्थिवेद-पुरिसवेदाणं सत्थाणं देवमिच्छाइट्ठीणं भंगो । सासणादि जाव संजदासंजदाणं सत्थाणमोघं । णqसयवेदमिच्छाइद्विसत्थाणं णत्थि । सासणादीणं सत्थाणमोघं । परत्थाणे पयंद। सव्वत्थोवा इत्थिवेदुवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । असंजदसम्माइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। सम्मामिच्छाइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो अपगतवेदियोंमें सयोगिकेवली जीव ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ १३४ ॥ इस सूत्रका अर्थ भी वही है जैसा ऊपर कह आये हैं। भव भागाभागको बतलाते हैं- सर्व जीवराशिके अनन्त खंड करने पर बहुभाग नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीव हैं । शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग अपगतवेदी जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहभाग परुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीव है। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग सर्व असंयतसम्यग्दृष्टि जीव है। शेष कथन भोघप्ररूपणाके समान है। स्वस्थान आदिकके भेदसे अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है। उनमेंसे स्वस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है। स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व देव मिथ्याष्टियोंके स्वस्थान अल्पबहुत्यके समान है । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयततक स्वस्थान अल्पबहुत्य ओघ स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है । नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है, सासादनसम्यग्दृष्टि आदि नपुंसकवेदियोंका स्वस्थान अल्पबहुस्व मोध स्वस्थानके समान है। अब परस्थानमें अशबहुत्व प्रकृत है-स्त्रीवेदी उपशमक सबसे स्तोक हैं । स्त्रीवेदी क्षपक जीय स्त्रीवेदी उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदी अप्रत्तसंयत जीव स्त्रीवेदी क्षपकोसे संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयत जीव स्त्रीवेदी अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है। स्त्रीधेदी सम्यग्मिध्यादृष्टियोंका अवहारकाल स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके भवहारकालसे असंख्यातगुणा है। स्त्रविदी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल स्त्रीवेदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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