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११४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, १२५. गुणा। भवणवासियदेवा असंखेज्जगुणा । देवीओ संखेज्जगुणाओ। पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ। वाणवेंतरदेवा संखेज्जगुणा । देवीओ संखेज्जगुणाओ । जोइसियदेवा संखेज्जगुणा । देवीओ संखेज्जगुणाओ तिदम्हादो खुद्दाबंधसुत्तादो जाणिजदे जहा देवाणं संखेज्जा भागा देवीओ होंति तितिरिक्खजोणिणीओ देवीणं संखेजदिभागो । ताओ देवीसु पक्खित्ते इत्थिवेदरासी होदि त्ति कट्ट देवीहि सादिरेयमिदि तासिं पमाणं सुत्ते वुत्तं ।
तासिमवहारकालुप्पत्तिं वत्तइस्सामो । देवअवहारकालम्हि वत्तीसरूवेहि भागे हिंदे लद्धं तम्हि चेव पक्खिविय तिरिक्ख-मणुसित्थेिवदागमणिमित्तं तत्तो एक्कस्स पदरंगुलस्स संखेजदिभाए अवणिदे इत्थिवेदअवहारकालस्स भागहारो होदि । (खत्तीसरुवाणि देवअवहारकालस्स भागहारो हति ति कधं णयदे ? तेहिंतो देवीओ वत्तीसगुणा हवंति त्ति आइरियपरंपरागयुवदेसादो णव्वदे। एदेण अवहारकालेण जगपदरे भागे हिदे इत्थिवेदरासी होदि।)
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव संजदासजदा ति ओघं ॥१२५॥
असंख्यातगुणे हैं। तथा यहीं पर देवियां देवोंसे संख्यातगुणी है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीप भवनवासी देवोंसे संख्यातगुणे हैं। वाणब्यन्तर देव पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंसे संख्यातगुणे हैं। तथा वहीं पर देवियां देवोंसे संख्यातगुणी हैं। ज्योतिषी देव वाणव्यन्तर देवियोंसे संख्यातगुणे हैं। तथा वहीं पर देवियां देवोंसे संख्यातगुणी हैं। इस वहाबन्धक सूत्रसे यह जाना जाता है कि देवोंके संख्यात बहुभाग देवियां होती है । तथा तिर्यंच योनिमती जीव देवियोंके संख्यातवें भाग होते हैं। अतएव इन तिर्यंच योनिमतियों के प्रमाणको देवियोंके प्रमाणमें मिला देने पर स्त्रीवेद जीवराशि होती है, ऐसा समझकर देवियोंसे कुछ अधिक इसप्रकार स्त्रीवेदी जीवोंका प्रमाण सूत्रमें कहा।
अब स्त्रीवेदियोंके अवहारकालकी उत्पत्तिको बतलाते हैं- देवोंके अवहारकालको बत्तीससे भाजित करके जो लब्ध आवे उसे उसी देव अवहारकालमें मिला कर जो योग हो उसमेंसे, तिर्यंच और मनुष्य स्त्रीवेदी जीवोंका प्रमाण लानेके लिये, एक प्रतरांगुलके संख्यातवें भागके निकाल लेने पर स्त्रीवेदी जीवोंका अवहारकाल होता है।
शंका-देष अघहारकालका भागहार बत्तीस होता है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-देवोंसे देवियां बत्तीसगुणी हैं, इसप्रकार भाचार्य-परंपरासे आये हुए उपदेशसे यह जाना जाता है।
योनिमतियोंके इस पूर्वोक्त अवहारकालसे जगप्रतरके भाजित करने पर स्त्रीवेद मीवराशि होती है।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक गुण१सीवेदाःxx सासादनसम्यग्दृष्टयावयः संयतासंयतान्ता सामाग्योक्तसंख्याः । स. सि. १,८.
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