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________________ १, २, १२३.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमग्गणाअप्पाबहुगपरूवणं [१०९ वेउब्विय-वेउब्वियमिस्सकायजोगीणं सत्थाणस्त देवगइभंगो । वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीणं सत्थाणस्स पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तभंगो। सेसकायजोगासु मिच्छाइट्ठीणं सत्थाणं णस्थि । सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइडि-असंजदसम्माइद्वि-संजदासंजदाणं सत्थाणस्स ओघभंगो। परत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा असच्चमोसमणजोगिणो चत्तारि उवसामगा। असञ्चमोसमणजोगिणो चत्तारि खवगा संवेज्जगुणा । असच्चमोसमणजोगिणो सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । असच्चमोसमणजोगिणो अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। असच्चमोसमणजोगिणो पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा'। असच्चमोसमणजोगिअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंवेज्जगुणो । असच्चमोसमणजोगिसम्मामिच्छाइहिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। असञ्चमोसमणजोगिसासणसम्माइटिअवहारकालो संखेज्जगुणो । असच्चमोसमणजोगिसंजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दबमसंखेज्जगुणं । असच्चमोसमणजोगिसासणसम्माइट्ठिदव्यमसंखेज्जगुणं । असच्चमोसमणजोगिसम्मामिच्छाइट्टिदव्वं संखेजगुणं । स्वस्थान अल्पबहुत्व देवगतिके समान है । वचनयोगी और अनुभयवचनयोगियोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तोंके स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है। शेष काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवोंके स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है। उन्हींके सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व ओघ स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है। अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है। अनुभय मनोयोगी चारों गुणस्थानवर्ती उपशामक सबसे स्तोक हैं । अनुभय मनोयोगी चार गुणस्थानवर्ती क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। अनुभय मनोयोगी सयोगिकेवली जीव उक्त क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। भनुभय मनोयोगी अप्रमत्तसंयत जीव उक्त सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। अनुभय मनोयोगी प्रमत्त. संयत जीव उक्त अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। अनुभयमनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका भव. हारकाल उक्त प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है। अनुभयमनोयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल उक्त असंयत अवहारकालसे असंख्यातंगुणा है। अनुभयमनोयोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल उक्त सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे संख्यातगुणा है । अनुभयमनोयोगी संयतासंयतोंका अवहारकाल उत्तः सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हीं अनुभयमनोयोगी संयतासंयतोंका द्रव्य उन्हींके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। अनुभयमनोयोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका द्रव्य उक्त संयतासंयतोंके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। अनुभयमनोयोगी सम्यमिथ्याष्टियोंका द्रव्य उक्त सासादनसम्यग्दृष्टियोंके द्रव्यसे संख्यातगुणा है । अनुभयमनो. १ प्रतिषु ' अजोगिकेवली' इति पाठः। २ प्रतिषु असंखे० गुणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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