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________________ ४१० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १२३. असच्चमोसमणजोगिअसंजदसम्माइट्ठिदव्बमसंखेज्जगुणं । पलिदोवममसंखेज्जगुणं । असञ्चमोसमणजोगिमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव विक्खंभई असंखेज्जगुणा । सेढी असंखेज्जगुणा । दव्बमसंखेज्जगुणं । पदरमसंखेज्जगुणं । लोगो असंखेज्जगुणो । एवं चत्तारिमण-पंचवचिजोगीणं परत्थाणप्पाबहुगं वत्तव्यं । वेउव्यियकायजोगीसु सव्वत्थोवो असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो । उवरि मणजोगपरत्थाणभंगो। वेउव्यियमिस्सकायजोगीसु सव्वत्थोवो असंजदसम्माइडिअवहारकालो। सासणसम्माइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दबमसंखेज्जगुणं । असंजदसम्माइटिदव्यमसंखेज्जगुणं । उपरि मणजोगिपरत्थाणभगो। सव्वत्थोवा कायजोगिणो उवसामगा। खवगा संवेज्जगुणा । एवं णेयव्यं जाव पलिदोवमं ति । पलिदोवमादो उवरि मिच्छाइट्ठी अणंतगुणा । एवं ओरालियकायजोगीणं पि वत्तव्यं । ओरालियमिस्सकायजोगीसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली । असंजदसम्माइट्ठी संखेजगुणा । सासणसम्माइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्यमसंखेज्जगुणं । पलिदोवममसंखेज्जगुणं । मिच्छाइटी अणंतगुणा । आहार-आहारमिस्सेसु णत्थि सत्थाणं परत्थाणं योगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका द्रव्य उक्त सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। पल्यो. पम उक्त असंयतसम्यग्दृष्टियोंके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। अनुभयमनोयोगी मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल पल्योपमसे असंख्यातगुणा है। उन्हींकी विष्कंभसूची अवहारकालसे असंख्यातगुणी है। जगश्रेणी विष्कंभसूचीसे असंख्यातगुणी है। उन्हीं अनुभयमनोयोगी मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है। जगप्रतर द्रव्यप्रमाणसे असंख्यातगुणा है । लोक जगप्रतरसे असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार शेष चार मनोयोगी और पांचों वचनयोगियोंका परस्थान अल्पबहुत्व कहना चाहिये । वैक्रियिककाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अपहारकाल सबसे स्तोक है। इसके ऊपर मनोयोगके परस्थान अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यासगुणा है। उन्हीं सासादनसम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका द्रव्य अपने अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। असंयतसम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंका द्रव्य सासादन द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। इसके ऊपर मनोयोगियोंके परस्थान अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये। काययोगी उपशामक सबसे स्तोक हैं। काययोगी क्षपक काययोगी उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये। पल्योपमके ऊपर काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार औदारिककाययोगियोंका भी कथन करना चाहिये । औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें सयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल असंयत सम्यग्दृष्टियोंसे असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य अपने अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। पल्योपम सासादनसम्यग्दृष्टि औदारिकमिश्रकाययोगियोंसे असंख्यातगुणा है। औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव पल्योपमसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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