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शंका-समाधान
स्त्रियोंमें सम्यग्दृष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? उसका समाधान करते हुए लिखा है कि नहीं; क्योंकि, उनमें सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं । सो इसका खुलासा क्या है ! क्या सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियोंमें उत्पन्न हो सकता है !
(नानकचंदजी, १-४-४०) स्त्रियोंको अपर्याप्तदशामें सम्यक्त्व नहीं होता है, ऐसा गोम्मटसार आदि ग्रंथोंका कथन है। तदनुसार धवलाके द्वितीय खंडमें पृ. ४३० पर भी लिखा है ' इस्थिवेदेण विणा ........ ' अपर्याप्तदशामें स्त्रीवेदीको सम्यक्त्व नहीं। किन्तु धवलाके प्रथम खंडमें पृ. ३३२ पर इसके विरुद्ध लिखा हैहुण्डावसर्पिण्या स्त्रीषु सम्यग्दृष्टयः किन्नोत्पद्यन्त इति चेन्न, उत्पद्यन्ते । तत्कुतोऽवसीयते ? अस्मा देवार्षात् । ऐसा विरोधी कथन क्यों है ?
(पं. अजितकुमारजी शास्त्री, पत्र २२.१०.४०) समाधान-अन्य गतिसे आकर सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियोंमें उत्पन्न नहीं होता है, यह तो सुनिश्चित है । इसलिए उक्त शंका-समाधानका अर्थ इस प्रकार लेना चाहिए
शंका--हुंडावसर्पिणीकालमें स्त्रियोंमें सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं होते हैं ! समाधान--नहीं; क्योंकि, उनमें सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं।
यहां ' उत्पधन्ते' क्रियाका अर्थ ' होना' लेना चाहिए । इससे स्पष्ट हो जाता है कि हुंडावसर्पिणीकालके दोषसे स्त्रियां सम्यग्दृष्टि न होवें, ऐसा शंकाकारके पूछनेका अभिप्राय है।।
__ अथवा, इस शंका-समाधानका निम्न प्रकारसे दूसरा भी अभिप्राय कदाचित् संभव हो सकता है
शंका-हुंडावसर्पिणीकालमें जैसे अन्य अनेकों असंभव बातें संभव हो जाती हैं, उसी प्रकारसे अन्य गतिसे आकर सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियोंमें क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? ।
समाधान- सूत्र नं. ९३ में कहा है कि ' असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें स्त्रियां नियमसे पर्याप्त होती हैं ' इससे जाना जाता है कि किसी भी कालमें सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियोंमें उत्पन्न नहीं होते हैं।
इस अभिप्रायके लिये मूलपाठमें 'चेन्न' के पश्चात्का विराम हटा लेना चाहिये । तथापि आगेके संदर्भसे इस अभिप्रायका सामंजस्य यथोचित नहीं बैठता ।
पृष्ठ ३४२ २२ शंका-धवलसिद्धान्तानुसार जो द्रव्यसे पुरुष होवे और भावों में स्त्रीरूप हो उसे योनिमती कहते हैं । किन्तु गोम्मटसार जीवकांड गाथा १५०, १५६, ३८० से ज्ञात होता है कि द्रव्यमें स्त्री हो, और परिणतिमें स्त्रीभाव हो उसको योनिमती कहते हैं। इस प्रकारकी योनिमाके १४ गुणस्थान माने हैं । इसका समाधान कीजिए। (० लक्ष्मीचंद्रजी)
समाधान-योनिमती तिर्यंच स्त्रियोंके उदय प्रकृतियां बतलाते हुए कर्मकांड गाथा मं.
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