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________________ १, २, १२३.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमग्गणाभागाभागपरूवणं (१०५ इट्ठी होति। सेसमसंखेजखंडे कए बहुखंडा वेउब्बियमिस्सकायजोगिमिच्छाइट्टिणो होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंड। वेउव्वियकायजोगिअसंजदसम्माइद्विरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा असच्चमोसवचिजोगिअसंजदसम्माइहिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमोसवचिजोगिअसंजदसम्माइद्विरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मोसवचिजोगिअसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चवचिजोगिअसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा असच्चमोसमणजोगिअसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि। सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमोसमणजोगिअसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मोसमणजोगिअसंजदसम्माइट्ठिरासी होदि । सेसंमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमणजेोगिअसंजदसम्माइद्विरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कदे बहुखंडा वेउब्धियकायजोगिसम्मामिच्छाइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कदे असच्चमोसवचिजोगिसम्मामिच्छाइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कदे बहुखंडा सच्चमोसवचिजोगिसम्मामिच्छाइट्ठिरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा मोसवचिजोगिसम्मामिच्छाइद्विरासी होदि । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चवचि मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग वैक्रियिकमिश्र. काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग वैक्रियिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव हैं । शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुभय वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग उभय वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मृषा वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग सत्य ववनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुभय मनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग उभय मनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मृषा मनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग सत्य मनोयोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशि है। शेष एक भाग संख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुभय वचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग उभय पचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मृषावचनयोगी सम्यग्मिथ्याशुष्टि जीवराशि है। शेष एक भागके संख्यात बंड करने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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