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________________ ४०४ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं मरमाणरासी देवेसु उववज्जमाणरासिस्स असंखेज्जदिभागत्तादो । सजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया, संखेज्जा ॥ १२३ ॥ ( एत्थ पुव्वाइरिओवसेण सड्डी जीवा हवंति । ) कुदो ? पदरे वीस, लोगपूरणे वीस, रवि ओदरमाणा पदरे वीस चेव भवंति त्ति । भागाभागं वत्तइस्सामा । सव्वजीवरासिं संखेज्जखंडे कए तत्थ बहुखंडा ओरा - लियकाय जोगरासीओ। सेसमसंखेज्जखंड कए बहुखंडा ओरालिय मिस्सकायजोगरासी होदि । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा कम्मइयकायमिच्छाइट्ठिरासी होदि । सेसमणतखंडे क बहुखंडा सिद्धा होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा असच्चमोसव चिजो गिमिच्छाइट्टिणो होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा वेउच्चियकायजोगि मिच्छाइट्टिणो होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमोसवचिजोगिमिच्छाइट्टिणो होंति । सेसं संखेजखंडे कए बहुखंडा मोसवचिज गिमिच्छाइट्टिण होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चवचिजोगिमिच्छाइट्टिणो होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा असच्चमोसमणमिच्छाइट्ठी होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमोसमणमिच्छाइट्ठी होंति । सेसं संखेजखंडे कए बहुखंडा मोसमणमिच्छाइट्टिण होंति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा सच्चमणमिच्छा • करके मरनेवाली राशि देवों में उत्पन्न होनेवाली राशिके असंख्यातवें भागमात्र पाई जाती है । कार्मणका योगी सयोगिकेवली जीव कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ १२३ ॥ पूर्व आचार्योंके उपदेशानुसार सयोगिकेवलियों में कार्मणकाय योगी जीव साठ होते हैं, क्योंकि, प्रतर समुद्धातमें वीस, लोकपूरण समुद्रातर्फे वीस और उतरते हुए प्रतर समुद्धात में पुनः वीस जीव होते हैं । [ १, २, १२३. अब भागाभागको बतलाते हैं- सर्व जीवराशिके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण औदारिककाययोगी जीवराशि है । शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभागप्रमाण औदारिकमिश्रकाययोगी जीवराशि है । शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर भागप्रमाण कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टि राशि है । शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभागप्रमाण सिद्ध जीव हैं। शेष एक भाग असंख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुभय वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभाग उभय वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मृषा वचनयोगी मिध्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग सत्य वचनयोगी मिध्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग अनुभय मनोयोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग उभय मनोयोगी मिथ्यादृष्टि जीव है। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग मृषा मनोयोगी मिथ्यादृष्टि जीव हैं । शेष एक भाग संख्यात खंड करने पर बहुभाग सत्य मनोयोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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