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१, २, ११४.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमग्गणापमाणपरूवणं
[३९७ लद्धमपज्जत्तद्धाए गुणिदे ओरालियमिस्सरासी हवदि । तमद्धाए गुणगारेण गुणिदे ओरालियकायजोगरासी हवदि । तेण ओरालियकायजोगरासीदो ओरालियमिस्सकायजोगरासी संखेज्जगुणहीणो ।
सासणसम्माइट्टी ओघं ॥ ११३॥
सासणसम्माइट्ठिणो देव-णेरइया जेण तिरिक्ख-मणुस्सेसु उववज्जमाणा पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ता लम्भंति तेण एदेसि पमाणपरूवणाए ओघभंगो हवदि । एदेसिमवहारकालो वुच्चदे । तं जहा- ओरालियकायजोगिसासणअवहारकालमावलियाए असंखेजदिभाएण गुणिदे ओरालियमिस्सकायजोगिसासणसम्माइटिअवहारकालो होदि। कुदो ? देव-णेरइएहितो तिरिक्ख-मणुस्सेसु उप्पज्जमाणरासिणो पुवट्ठिदरासिस्स असंखेजदिभागत्तादो ।
असंजदसम्माइट्ठी सजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया, संखेजा ॥११४ ॥
देव णेरइयसम्माइद्विणो मणुसेसु उववज्जमाणा संखेजा चेव लभंति, मणुसपज्जत्तरासिस्स अण्णहा असंखेज्जत्तप्पसंगा ( ओरालियमिस्सकायजोगम्हि सुत्ताविरुद्धण
जो लब्ध आवे उसे अपर्याप्त कालसे गुणित कर देने पर औदारिकमिश्रकाययोगी राशि होती है । इस औदारिकमिश्रकाययोगी जीवराशिको औदारिककाययोगके कालके गुणक.रसे गुणित कर देने पर औदारिककाययोगीराशि होती है । इसलिये औदारिककाययोगी जीव. राशिसे औदारिकमिश्रकाययोगी जीवराशि संख्यातगुणी हीन है, यह सिद्ध हुआ।
औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सामान्य प्ररूपणाके समान हैं ॥ ११३ ॥
चूंकि तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए सासादनसम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग पाये जाते हैं, इसलिये औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृषियों के प्रमाणको प्ररूपणा सामान्य प्ररूपणाके समान होती है। अब इनका अवहारकाल कहते हैं । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- औदारिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है, क्योंकि, देव और नारकियोंमेंसे तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाली राशियां पहले स्थित राशिके असंख्यातवें भागमान होती हैं।
__ असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली औदारिकमिश्रकाययोगी जीव कितने हैं ? संख्यात हैं ॥ ११४ ॥
सम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीव मनुष्योंमें उत्पन्न होते हुए संख्यात ही पाये जाते हैं। यदि ऐसा न माना जाय तो मनुष्य पर्याप्त राशिको असंख्यातपनेका प्रसंग आ जाता है।
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