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________________ ३९४ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, १०९. जोगि - मोसम जोगि - सच्चेमणाणं जहाकमेण संखेजरूवेहिं गुणिजदि । तहि अवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे ओरालियकायजोगिसासणसम्म इडिअवहारकालो होदि । तहि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे ओरालियमिस्स सासणसम्माइट्ठिअवहार कालो होदि । तम्हि आवलिया असंखेज्जदिभाएण गुणिदे वेउव्वियमिस्स जोगिसासणसम्माइट्ठि अवहारकालो होदि । तहि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे कम्मइयसासणसम्म इडिअवहारकालो होदि । एवं संजदासंजदाणं । णवरि ओघावहारकालं संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते ओरालियकायजोगिसंजदासंजदाणं अवहारकालो होदि । तम्ह संखेज्जरूवेहिं गुणिदे वचिजोगिसंजदासंजदअवहारकालो होदि । सेसं पुब्बं व वत्तव्धं । पमत्तादीणं बुच्चदे | मणजोग - वचिजोग-कायजो गाणं समासेण अष्पष्पणो रासिम्हि भागे हिदे लद्धं तिप्पडिरासिं काऊण पुणो अप्पप्पणो अद्धाहि गुणिदे एक्केकहि गुणट्ठाणे मण-वचि-काय जोगरासीओ हवंति । पुणो सच्चामोस - असच्चमो समणजोगद्धाणं समासेण मणजोगरासिं खंडिय लद्धं च दुप्पडिरासिं काऊण अष्पष्पणो अद्धाहि गुणिदे सच्चामोस - उभयमनोयोगी, मृषामनोयोगी और सत्यमनोयोगी जीवोंका अवहारकाल लानेके लिये यथाक्रम से संख्या तसे गुणित करना चाहिये | सत्यमनोयोगी सासादनसम्यग्दृष्टियों के अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर औदारिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादन सम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर कार्मणकाययोगी सासादन सम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसीप्रकार संयतासंयत वचनयोगी, मनोयोगी और काययोगियोंका अवहारकाल जानना चाहिये। यहां इतनी विशेषता है कि संयतासंयत ओघ अवहारकालको संख्यातसे खांडत करके जो लब्ध आवे उसे उसी संयतासंयत ओघ अवहार. कालमें मिला देने पर औदारिककाययोगी संयतासंयतोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यात से गुणित करने पर वचनयोगी संयतासंयतोंका अवहारकाल होता है। शेष कथन पहले के समान करना चाहिये | अब प्रमत्तसंयत आदिका द्रव्यप्रमाण कहते हैं- मनोयोग, वचनयोग औरं काययोगके कालके जोड़से अपने अपने गुणस्थानसंबन्धी राशिमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उसकी तीन प्रतिराशियां करके पुनः उन्हें अपने अपने कालसे गुणित कर देने पर एक एक गुणस्थानमें मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगियोंकी राशियां होती हैं । पुनः उभय मनोयोग और अनुभय मनोयोगके कालोंके जोड़से मनोयोगी जीवराशिको खंडित करके जो लब्ध आवे उसकी दो प्रतिराशियां करके अपने अपने कालसे गुणित करने पर उभय १ प्रतिषु ' सच्च मोस - ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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