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१, २, १०८.] दव्वपमाणाणुगमे जोगमगणापमाणपरूवणं
[ ३८९ एत्थ मिच्छाइट्ठी इदि एगवयणणिदेसो, केवडिया इदि बहुवयणणिद्देसो; कधमेदाणं भिण्णाहियरणाणमेयट्ठपउत्ती ? ण, एयाणेयाणमण्णोण्णाजहवुत्तीणमेयद्वत्ताविरोहा । सेसं सुगमं । असंखेज्जा इदि सामण्णेण णवविहस्सासंखेज्जस्म गहणे पसत्ते अणिच्छिदासंखेज्जपडिसेहट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥१०७॥
___ एदं सुत्तमइसुगमं । अणिच्छिदासंखेज्जासंखेजवियप्पपडिसेहणिमित्तमुत्तरसुत्तावदारो भवदि
खेत्तेण वचिचोगि-असच्चमोसवचिजोगीसु मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेजदिभागवग्गपडिभागेण ॥ १०८ ॥
वचिजोगो असच्चमोसवचिजोगो च वीइंदियप्पहुडीणमुवरिमाणं जीवसमासाणं भासापज्जत्तीए पज्जतयाणं भवदि, तेण वि-ति-चउरिदिय-असणिपंचिंदियपज्जत्तरासीओ
शंका-इस सूत्र में 'मिच्छाइट्ठी' यह एकवचन निर्देश है, और केवडिया' यह बहुवचन निर्देश है । अतएव भिन्न भिन्न अधिकरणवाले इन दोनोंकी एकार्थमें कैसे प्रवृत्ति हो सकती है?
समाधान- नहीं, क्योंकि, एक और अनेक अन्योन्य अजहवृत्ति है, इसलिये इन दोनोंकी एकार्थमें प्रवृत्ति होने में कोई विरोध नहीं आता है।
शेष कथन सुगम है। 'असंख्यात है' इसप्रकार सामान्य धचन देनेसे नौ प्रकारके असंख्यातोंका ग्रहण प्राप्त होता है, अतएव अनिच्छित असंख्यातोंके प्रतिषेध करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
कालकी अपेक्षा वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं । १०७॥
यह सूत्र अतिसुगम है । अनिच्छित असंख्यातासंख्यातरूप विकल्पके प्रतिषेध करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार हुआ है
क्षेत्रकी अपेक्षा वचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा अंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥ १.८॥
द्वीन्द्रियोंसे लेकर ऊपरके संपूर्ण जीवसमासोंमें भाषापर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवोंके वचनयोग और अनुभय वचनयोग पाया जाता है, इसलिये द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय
१ प्रतिषु ' मणदि ' इति पाठः । २ योगानुवादेन xx वाग्योगिनश्च मिण्यादृष्टयोऽसंख्येयाः श्रेणयः प्रतरासंख्येयमागप्रमिताः।स. सि. १,१.
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