________________
३९० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, १०९. एगहुँ करिय वचिजोग-कायजोगद्धासमासेण खंडिय एगखंडं वचिजोगद्धाए गुणिय पंचिं. दियअसच्चमोसवचिजोगरासिं पक्खित्ते असच्चमोसवचिजोगरासी होदि । एत्थ सच्चादिसेसवचिजोगरासिं पक्खित्ते वचिजोगरासी होदि । अद्धासमासस्स आवलियाए गुणगारत्तेण दृविदसंखेज्जरूवेहिंतो पदरंगुलस्स हेट्टा भागहारत्तेण दृविदसंखज्जरूवाणि जेण संखेजगुणाणि तेण पदरंगुलस्स संखेजदिभागो भागहारो भवदि ।
सेसाणं मणिजोगिभंगो ॥ १०९ ॥
जधा मणजोगरासी ओघसासणादीणं संखेजदिभागो, तहा वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीसु सासणादओ ओघसासणादीणं संखेजदिभागो । सेसं सुगमं ।
संपहि अप्पाबहुगवलेण पुघिल्लसुत्तेसु वुत्तरासीणमवहारकाला परूविज्जते । तं जहा- संखेज्जरूवेहि सूचिअंगुले भागे हिदे लद्धे वग्गिदे वचिजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते असच्चमोसवचिजोगिअवहारकालो
और असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवराशिको एकत्रित करके और उसे वचनयोग और काययोगके कालके जोड़रूप प्रमाणसे खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे उसे वचनयोगके कालसे गुणित करके जो प्रमाण हो उसमें पंचेन्द्रिय अनुमय वचनयोगी राशि मिला देने पर अनुभय वचनयोगी जीवराशि होती है। इसमें सत्यवचनयोगी जीवराशि आदि शेष वचनयोगी जीवराशियोंके मिला देने पर वचनयोगी जीवराशि होती है। यहां पर अद्धासमासके लिये आवलीके गुणकाररूपसे स्थापित संण्यातसे प्रतरांगुलके नीचे भागहाररूपसे स्थापित संख्यात चूंकि संख्यातगुणा है, इसलिये प्रकृतमें प्रतरांगुलका संख्यातवां भाग भागहार है।
सासादनसम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानवी वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी जीव सासादनसम्यग्दृष्टि आदि मनोयोगिराशिके समान हैं ॥१०९॥
जिसप्रकार मनोयोगी जीवराशि ओघसासादनसम्यग्दृष्टि आदिके संख्यातवें भाग है, उसीप्रकार बचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियों में सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवराशि ओघ सासादनसम्यग्दृष्टि आदिके संख्यातवें भाग है। शेष कथन सुगम है।
__अब अल्पवहुत्वके बलसे पूर्वोक्त सत्रोंमें कही गई राशियोंके अवहारकाल कहे जाते हैं। वे इसप्रकार हैं- संख्यातसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसके वर्गित करने पर पचनयोगियोंका अघहारकाल होता है। इसे संख्यातसे खंडित करके जो लब्ध आवे उसे इसी वचनयोगियोंके अवहारकालमें मिला देने पर अनुभय वचनयोगियोंका अपहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर वैक्रियिक काययोगियोंका अवहारकाल
१ त्रियोगिनो सासादनसम्यग्दृष्टयादयः संयतासंवतान्ताः पल्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । स. सि. १, ६,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org