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________________ ३८२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, १०२. तदो असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। एवं जाणिऊण णेयव्वं जाव संजदासंजदअवहारकालो त्ति । तदो बादरतेउपज्जत्ता असंखेजगुणा। तदो संजदासंजददव्यमसंखेज्जगुणं । एवं जाणिऊण णेदव्यं जाव पलिदोवमो त्ति । तदो बादरआउपज्जत्तअवहारकालो असंखेजगुणो । बादर पुढविपज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । बादरणिगोदपदिद्विदपज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। बादरवणप्फइकाइयपत्तेयपज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। तसकाइयमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । तसकाइयअपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदेगखंडेण । तसकाइयपज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्य संखेज्जदिभागो। तदो तसकाइयपज्जत्त उपदेश नहीं पाया जाता है। बादर वायुकायिक पर्याप्तोंके अवहारकालसे असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार समझकर संयतासंयतोंके अवहारकालतक ले जाना चाहिये । संयतासंयतोंके अवहारकालसे बादर तेजस्कायिक पर्याप्त असंख्यातगुणे ससे संयतासंयतोंका द्रव्य असंख्यातगुणा है। इसीप्रकार जानकर पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे बादर अप्कायिक जीवोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंका अवहारकाल बादर अप्कायिक पर्याप्त जीवोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। बादर निगोदप्रतिष्ठित प्रत्येक जीवोंका अवहारकाल बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंका अवहार काल बादर निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्तोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्य तवां भाग गुणकार है। सकायिक मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है। त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंका अवहारकाल त्रसकायिक मिथ्याटियोंके अवारकालसे विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे त्रसकायिक मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालको खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है। प्रसकायिक पर्याप्त जीवोंका अवहारकाल सकायिक अपर्याप्तोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है । प्रसकायिक पर्याप्तोंके अबहारकालसे त्रसकायिक पर्याप्तोंकी विष्कंभसूची १ प्रतिषु वाउ० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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