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________________ १, २, १०२.] दव्वपमाणाणुगमे कायमग्गणाअप्पाबहुगपरूवणं [ ३८१ सरीरअपज्जत्तमेत्तेण । सुहुमवणप्फदिकाइयपज्जत्ता संखेज्जगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जा समया । णिगोदपजत्ता विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण बादरणिगोदपज्जत्तमेत्तेण । वणप्फइकाइयपज्जत्ता विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण? बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्तमेत्तेण । सुहुमवणप्फदिकाइया विसेसाहिया । केतियमेत्तेण ? बादरवणफदिपज्जत्तेणूणसुहुमवणफदिअपज्जत्तमेत्तेण । णिगोदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरणिगोदमेत्तेण । वणप्फइकाइया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरमेत्तेण । एवं वणप्फइकाइयपरत्थाणप्पाबहुगं समतं । तसकाइयपरत्थाणस्स पंचिंदियपरत्थाणभंगो । एवं परत्थाणप्पाबहुगं समत्तं । . सधपरत्थाणप्पाबहुगं वत्तइस्सामो। सव्वत्थोवा अजेगिकेवली । चत्तारि उवसामगा संखेजगुणा । चत्तारि खवगा संखेज्जगुणा। सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । अपमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तापमत्तरासीहितो बादरवाउपज्जत्तअवहारकालो किमहिओ ऊणो त्ति ण जाणिज्जदे । कुदो ? संपहि उवएसाभावादो । .......................... वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव वनस्पतिकायिक अपर्याप्तोंसे संख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। निगोद पर्याप्त जीव सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर निगोद पर्याप्तोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव निगोद पर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तीका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिक पर्याप्तोसे विशेष अधिक हैं। कितनेप्रात्र विशेषसे अधिक है ? बादर वनस्पति पर्याप्तोंके प्रमाणसे न्यून सूक्ष्म वनस्पति अपर्याप्तोंका जितना प्रमाण हो तन्मात्र विशेषसे अधिक है। निगोद जीब सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवोंसे विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर निगोद जीवोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। वनस्पतिकायिक जीव विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। इसप्रकार वनस्पतिकायिक जीवोंका पररथान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। त्रसकायिक जीवोंका परस्थान अल्पबहुत्व पंचेन्द्रिय जीवोंके परस्थान अल्पबहुत्वके समान है । इसप्रकार परस्थान अल्पहुत्व समाप्त हुआ। अब सर्वपरस्थान अल्पबहुत्वको बतलाते हैं- अयोगिकेपली जीव सबसे थोड़े हैं। चारों गुणस्थानोंके उपशामक अयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। चारों गुणस्थानोंके क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवली जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवराशिसे बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंका अवहारकाल क्या अधिक है, या कम, यह नहीं जाना जाता है, क्योंकि, इस समय इस प्रकारका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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