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________________ १, २, १००.] दव्वपमाणाणुगमे तसकाइयपमाणपरूवणं [३६१ एदस्त सुत्तस्स अत्थो असई परूविदो ति ण वुच्चदे । असंखेजा इदि सामण्णवयणेण णवण्हमसंखेजाणं गहणे संपत्ते अविवक्खिदे अवणिय विवक्खियपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि। ___ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ९९ ॥ एदस्स वि अत्था बहुसो उत्तो त्ति ण उच्चदे । तं च असंखेज्जासंखेज्जयमणेयवियप्पमिदि तस्स विसेसपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि खेत्तेण तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स असंखेजदिभागवग्गपडिभागेण अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण ॥ १०॥ एदेण सुत्तेण जगपदरादो जगसेढीदो च उवरिम-हेट्ठिमसंखेज्जवियप्पा अवणिदा भवति। 'अंगुलस्स असंखेजदिभागवग्गपडिभागेण' इमेण वयणेण जगपदरस्स अंतब्भूद इस सूत्रका अर्थ कईवार कह चुके हैं, इसलिये यहां नहीं कहते हैं। सूत्रमें असं. ख्यात हैं' इस सामान्य वचनके देनेसे नौ ही प्रकारके असंख्यातोंके ग्रहणके प्राप्त होने पर अविवाक्षित असंख्यातोंका अपनयन करके विवक्षित असंख्यातके प्ररूपण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं __कालकी अपेक्षा त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ९९ ॥ इस सूत्रका भी अर्थ अनेकवार कहा जा चुका है, इसलिये नहीं कहते हैं। वह असंख्यातासंख्यात अनेक प्रकारका है, इसलिये उसके विशेषके प्ररूपण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं क्षेत्रकी अपेक्षा त्रसकायिकोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे और त्रसकायिक पर्याप्तोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके संख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥१०॥ इस सूत्रसे जगप्रतर और जगश्रेणीसे ऊपर और नीचेके असंख्यात विकल्प अपनीत होते हैं। 'अंगुलके असंख्यातवें भागके वर्गरूप प्रतिभागसे' इस वचनसे जगप्रतरके अन्तर्भूत १ प्रतिषु ' असंखेज्जदिभागवणप्फदिमागेण ' इति पाठः । २ प्रतिषु · असंखेज्जदिमागपडिभागेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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