SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, ९१. पदरावलियउवरिमवग्गे भागे हिदे: बादरते उपज्जत्तरासी आगच्छदि । एवमागच्छदिति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे बादरते उपज्जत्तरासी आगच्छदि । घणाघणे वत्तइस्लामो | पदरावलियाए असंखेजदिभागेण पदरावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गं गुणेऊण तेण पदरावलियघणउवरिमवग्गस्तुवरिमवग्गं गुणेऊण तेण गुणिदरामिणा घणाघणावलिय उवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे बादर उपज्जतरासी आगच्छदि । तं जहा - पदरावलियघण उवरिमवग्गस्तुवरिमवग्गेण घणाघणावलियउवरिमवग्गस्तुवरिमवग्गे भागे हिदे घणावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो विपदरावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गेण तम्हि भागे हिदे पदरावलियवरमग्गो आगच्छदि । पुणो वि पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियउवरिमवग्गे भागे हिदे बादरते उपज्जत्तरासी आगच्छदि । एवमागच्छदिति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि बादरतेउपज्जत्तरासी आगच्छदि । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु णेयव्वं । पदरावलिय उवरिमवग्गस्स घणावलियउवरिमवग्गस्स घणाघणा ( - वलियउवरिमवग्गस्स) च असंखेज्जदिहै । पुनः प्रतरावली के असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है । इसप्रकार बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उक्त भागद्दारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है । अब घनाघनमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं—- प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावली के उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरावलीके घनके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो गुणित राशि लब्ध आवे उससे घनाघनावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- प्रतरावलीके घनके उपरिम वर्ग के उपरिम वर्गसे घनाघनावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गके भाजित करने पर घनावलीके उपरिम वर्गका उपरिम वर्ग आता है। फिर भी प्रतरावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गसे घनालीके उपरम वर्गके उपरिम वर्गके भाजित करने पर प्रतरावलीका उपरिम वर्ग आता है । फिर भी प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है । इसप्रकार बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है । इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त स्थानों में ले जाना चाहिये । प्रतरावलीके उपरिम वर्ग के असंख्यातवें भागरूप, घनावलीके उपरिम वर्गके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy