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________________ १, २, ९१.] दव्यपमाणाणुगमे पुढयिकाइयादिपमाणपरूवणं [३५१ तेउपज्जत्तरासी होदि । तं जहा- पदरावलियघणपढमवग्गमूलेण घणाघणपढमवग्गमूले भागे हिदे पदरावलियघणो आगच्छदि । पुणे। पदरावलियाए पदरावलियघणे भागे हिदे पदरावलियउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो पदरावलियाए असंखेज्जदिभागेण तम्हि भागे हिदे बादरतेउपज्जत्तरासी आगच्छदि। उवरिमवियप्पो तिविहो गहिदादिभेएण। वेरूवे गहिदं वत्तइस्सामो। पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियउवरिमवग्गे भागे हिदे बादरतेउपज्जत्तरासी होदि। अहवा पदरावलियाए असंखेञ्जदिभाएण पदरावलियउवरिमवग्गं गुणेऊण तदुवरिमवग्गे भागे हिदे बादरतेउपज्जत्तरासी होदि । ( एवमागच्छदि त्ति कट्ट गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि बादरतेउकाइयपज्जत्तरासी आगच्छदि।) अट्ठरूवे वत्तइस्सामो । पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गं गुणेऊण घणावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे बादरतेउपज्जत्तरासी होदि । तं जहा- पदरावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गेण घणावलियउवरिमवग्गस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पदरावलियउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो वि पदरावलियाए असंखेजदिभाएण तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-प्रतरावलीके घनके प्रथम वर्गमूलसे प्रतरावलीके घनाघनके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर प्रतरावलीका घन आता है। पुनःप्रतरावलीसे प्रतरावलीके घनके भाजित करने पर प्रतरावलीका उपरिम वर्ग आता है । पुनः प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे उसी प्रतरावलीके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है। . गृहीत आदिके भेदसे उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है। उनमेंसे द्विरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। अथवा, प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। इसप्रकार भी बादर तेजस्कायक पर्याप्त राशि आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि आती है। ___अब अष्टरूपमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आये उसका वलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- प्रतरावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गसे घनावलीके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गके भाजित करने पर प्रतरावलीका उपरिम वर्ग आता १ प्रतिषु 'त्ति गुणेऊण मागग्गहणं कदं ' इत्यधिकः पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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