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________________ ३५२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ९१. गंतूण आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदपदरावलियाए तदुवरिमवग्गे भागे हिदे असंखेज्जाओ पदरावलियाओ लब्भंति । कारणं गदं। पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियाए ओवट्टिदाए तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाओ पदरावलियाओ हवंति । णिरुत्ती गदा । वियप्पो दुविहो, हेट्ठिमवियप्पो उवरिमवियप्पो चेदि । तत्थ हेट्ठिमवियप्पं वेरूवे वत्तइस्सामो। पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियमोवट्टिय लद्धेण तं चेव पदरावलियं गुणिदे बादरतेउपज्जत्तरासी होदि । अट्ठरूवे वत्तइस्सामो। पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियं गुणिय पदरावलियघणे भागे हिदे बादरतेउपज्जत्तरासी होदि । तं जहा- पदरावलियाए पदरावलियघणे भागे हिदे पदरावलियउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण तम्हि भागे हिदे बादरतेउपजत्तरासी होदि । घणाघणे वत्तइस्सामो । पदरावलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरावलियं गुणिय तेण पदरावलियघणपढमवग्गमूलं गुणिय पदरावलियघणाघणपढमवग्गमूले भागे हिदे बादर आती हैं। प्रतरावलोके तृतीय भागका प्रतरावलीके उपरिम वर्गमें भाग देने पर तीन प्रतरावलियां लब्ध आती हैं। इसीप्रकार नीचे जाकर आवलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीको खंडित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरावलोके उपरिम वर्गमें भाग देने पर असंख्यात प्रतरावलियां लब्ध आती हैं। इसप्रकार कारणका कथन समाप्त हुआ। प्रतरावलीके असख्यातवें भागसे प्रतरावलीके भाजित करने पर वहां जितना प्रमाण लब्ध आवे तत्प्रमाण प्रतरावलियां बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवोंका प्रमाण होता है। इसप्रकार निरुक्तिका कथन समाप्त हुआ। विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तन विकल्प और उपरिम विकल्प । उनमेंसे द्विरूपमें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे उसी प्रतरावलीको गुणित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीवराशि होती है। अब अष्टरूपमें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं। प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरावलीके घनके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-प्रतराव से प्रतरावलीके घनके भाजित करने पर प्रतरावलीका उपरिम वर्ग आता है। पुनः प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे उसी प्रतरावलीके उपरिम वर्गके भाजित करने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि होती है। अब घनाघनमें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं-प्रतरावलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरावलीको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे प्रतरावलीके घनके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरावलीके घनाघनके प्रथम वर्गमूलमें भाग देने पर बादर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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