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दव्वपमाणानुगमे पुढविकाइयादिपमाणपरूवणं
वहमसंखेज्जाणं गहणं पत्ते अणिच्छिदा संखेज्जपडि सेहमुत्तरसुतं भणदिअसं खेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि- उस्सप्पिणीहि अवहिरंति काले ॥ ८९ ॥
एदस्स वि सुत्तस्स अत्थो सुगमो चेव । एदेण अवगद - असंखेज्जासंखेज्जस्स विसेसेण तल्लद्धिणिमित्तमुत्तरसुत्तमाह
खेत्तेण बादरपुढविकाइय- बादरआउकाइय-वादरवणफइकाइयपत्तेयसरीरपज्जत एहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडिभागेण ॥ ९० ॥
एत्थ अंगुलमिदि उत्ते पमाणांगुलं घेत्तव्यं । तस्स असंखेजदिभागस्स जो वग्गे तेण पडिभागेण भागहारेण । एत्थ निमित्ते तइया दट्ठवा । एदेण अवहारकालेण बादरपुढ विपज्जत्तादीहि जगपदरमवहिरदि ति जं वृत्तं होदि ।
१, २, ९०.
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सामान्य वचन देने से नौ प्रकारके असंख्यातोंका ग्रहण प्राप्त होने पर अनिच्छित असंख्यातोंके प्रतिषेध करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
कालकी अपेक्षा बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त बादर अष्कायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव असंख्याता संख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ।। ८९ ।।
इस सूत्रका भी अर्थ सुगम ही है । यद्यपि इस सूत्र से असंख्याता संख्यात अवगत हो गया, फिर भी उसकी विशेषरूप से प्राप्ति करानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
क्षेत्रकी अपेक्षा बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर अष्कायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके द्वारा सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग के वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर अपहृत होता है ।। ९० ॥
यहां सूत्र में अंगुल ऐसा कहने पर प्रमाणांगुलका ग्रहण करना चाहिये। उस प्रमाणां गुलके असंख्यातवें भागका जो वर्ग तद्रूप प्रतिभागसे अर्थात् भागहारसे। यहां निमित्तमें तृतीया विभक्ति जानना चाहिये। इस अवहारकालसे बादर पृथिवी कायिक पर्याप्त आदि जीवोंके द्वारा जगप्रतर अपहृत होता है, यह इस सूत्रका अभिप्राय है ।
विशेषार्थ - उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुलके भेदसे अंगुल तीन प्रकारका है । आठ यवका एक उत्सेधांगुल होता है। पांचसौ उत्सेधांगुलोंका एक प्रमाणांगुल होता है । १ पळासंखेज्जवह्निदपदरंगुलमाजिदे जगप्पवरे । जलभूणिपबादरया पुण्णा आवलिअसंखमजिदकमा ॥ गी. जी. २०९.
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