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________________ १२८] छक्खंडांगमे जीवहाणं [१, २, ८६. जाव चउरिदियअपज्जत्त-चउरिदिय-तेइंदियअपज्जत्त-तेइंदिय-वेइंदियअपज्जत्त-वेइंदियाणं विक्खंभमईओ त्ति । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? वीइंदियअवहारकालो । चउरिदियपज्जत्तदव्वं असंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसूई । पंचिंदियपज्जत्तदव्वं विसेसाहियं । वेइंदियपज्जत्तदव्वं विसेसाहियं । तेइंदियपज्जत्तदव्यं विसेसाहियं । पंचिंदियअपज्जतदव्वं असंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। पंचिंदियदव्वं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेजदिभाएण खंडिदपंचिंदियअपञ्जत्तदव्यमेत्तेण । एवं चरिंदियअपज्जत्त-चउरिदिय-तेइंदियअपजत्त-तेइंदिय-वेइंदियअपज्जत्तवेइंदियाणं दव्वाणि जहाकमेण विसेसाहियाणि । तदो पदरमसंखेजगुणं । को गुणगारो ? वेइंदियअवहारकालो। लोगो असंखेजगुणो । को गुणगारो ? सेढी । अणिदिया अणंतगुणा। को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणतगुणो सिद्धाणमसंखेजदिभागो। को पडिभागो ? लोगो । बादरेइंदियपज्जत्ता अणंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणतगुणो, सिद्धेहि सूचीको खंडित करके जो भाग लब्ध आवे तम्मात्र विशेषसे अधिक है। इसी. प्रकार चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय अपर्याप्त और द्वन्द्रिय जीवोंकी विष्कंभसूची आनेतक ले जाना चाहिये । द्वीन्द्रिय जीयोंकी विष्कंभसूचीसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल गुणकार है। जगश्रेणीसे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कभसूची गुणकार है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंके द्रष्यसे पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका द्रव्य विशेष अधिक है। पंचेन्द्रिय पर्याप्त द्रव्यसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त द्रष्य विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्त द्रव्यसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त द्रव्य विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय पर्याप्त द्रव्यसे पंचेन्द्रियोंका अपर्याप्त द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आपलीका असं. ख्यातवां भाग गुणकार है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्त द्रव्यसे पंचेन्द्रिय द्रव्य विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है ? आवलोके असंख्यातवें भागसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्त. द्रव्यको खंडित करके जो लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है। इसीप्रकार चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय अपर्याप्त और द्वीन्द्रिय जीवोंका द्रव्यप्रमाण यथाक्रमसे विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय द्रव्यप्रमाणसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल गुणकार है। जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है। लोकसे अनिन्द्रिय जीवोंका प्रमाण अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्ध जीवोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? लोकका प्रमाण प्रतिभाग है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंका प्रमाण अनिन्द्रिय जीवोंके प्रमाणसे अनन्तगुणा है। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे भी अनन्तगुणा, सिद्धोंसे भी अनन्तगुणा, जीवराशिके प्रथम वर्गमूलसे भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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