SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ८६.] दव्वपमाणाणुगमे एइंदियादिअप्पाबहुगपरूवणं [३२७. केत्तियमेत्तो ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदमेत्तो। एवं तेइंदिय-तेइंदियअपज्जत चउरिदिय-चउरिदियअपज्जत्त-पंचिंदिय-पंचिंदियअपज्जत्ताणं अवहारकाला कमेण विसेसाहिया । तदो तीइंदियपज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो। वेइंदियपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ। केत्तियमेत्तो ? आवलियाए असंखेजदिभाएण खंडिदतीइंदियपजत्तअवहारकालमत्तो विसेसो । पंचिंदियपज्जत्तअवहारकालो विसेसो । चउरिदियपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ । तस्सेव विक्खंभई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पुव्वं भणिदो । पंचिंदियपजत्तविक्खंभसई विसेसाहिया । वेइंदियपज्जत्तविक्खंभसई विसेसाहिआ । तेइंदियपज्जत्तविक्खंभसूई विसेसाहिया । पंचिंदियअपज्जत्तविक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो । पंचिंदियविक्खंभसूई विसेसाहिया । केत्तियमेतेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदपंचिंदियअपज्जत्तविक्खंभसूचिमत्तेण । एवं णेयर्व अपहारकालसे विशेष अधिक है। कितनामात्र विशेष अधिक है ? आवलीके असंख्यातचे भागसे द्वीन्द्रियोंके अवहारकालको खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे तन्मात्र विशेष अधिक है। इसीप्रकार त्रीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके अवहारकाल भी क्रमसे विशेष अधिक हैं। पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके अवहारकालसे त्रीन्द्रिय पर्याप्तकोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकोंके अवहारकालसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंका अवहारकाल विशेष अधिक है। कितनामात्र विशेष अधिक है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे त्रीन्द्रिय पर्याप्तकोंके अवहारकालको खंडित करके जो भाग लब्ध आवे तन्मात्र विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंके अवहारकालसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंका अवहारकाल विशेष अधिक है। पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके अवहारकालसे चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंका अवहारकाल विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंके अवहारकालसे उन्हींकी विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? पहले कहा जा चुका है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कंभसूचीसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कभसूची विशेष अधिक है। पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कंभसूचीसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कभसूची विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्सकोंकी विष्कभसूचीसे त्रीन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कमसूची विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कंभसूचीसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंकी विष्कभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है । पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंकी विष्कभसूचीसे पंचेन्द्रियोंकी विष्कंभसूची विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंकी विष्कम १ प्रतिषु 'पंचिंदिय' इति पाठो नास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy