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________________ ३२६ ॥ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ८६. तस्सेव अपज्जत्तदव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागस्स संखेज्जदिभागो। वेइंदियदव्वं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तो? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदसगअपज्जत्तमेत्तो । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? वेइंदियअवहारकालो। लोगो असंखेज्जगुणो । को गुणगारों ? सेढी । एवं ताइदिय-चउरिंदियाणं । एवं पंचिंदियाणं पि । णवरि अजोगिभगवंतमाई काऊण वत्तव्यं । । .. सव्वपरत्थाणे पयदं। सव्वत्थोवमजोगिकेवलिदव्वं । चत्तारि उवसामगा संखेज्जगुणा। चत्तारि खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवलिदव्वं संखेज्जगुणं । अप्पमत्तसंजददव्वं संखेज्जगुणं । पमत्तसंजददव्वं संखेज्जगुणं । असंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो । उरि पलिदोवमं ति ओघं । तदो वीईदियअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सगअवहारकालस्स संखेजदिभागो । को पडिभागो ? पलिदोवमं । अहवा पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागी असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि । को पडिभागो ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदपलिदोवमं । तस्सेव अपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ । विष्कभसूची गुणकार है। उन्हीं द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका द्रव्य द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके द्रव्यले असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? आवलोके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। द्वीन्द्रिय जीवोंका द्रव्य द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके द्रव्यसे विशेष अधिक है। कितनामात्र विशेष अधिक है ? द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके प्रमाणको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके जो लब्ध आवे तन्मान विशेष अधिक है। जगप्रतर द्वीन्द्रिय जीवोंके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल गुणकार है। जगप्रतरसे लोक असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है। इसीप्रकार सीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंका परस्थान अल्पबहुत्व है। तथा इसीप्रकार पंचेन्द्रिय जीवोंका भी परस्थान अल्यबहुत्व है। इतना विशेष है कि पंचेन्द्रिय जीवोंका परस्थान अल्पबहुत्व कहते समय अयोगी भगवानको आदि करके उसका कथन करना चाहिये। ___अब सर्वपरस्थान अल्पबहुत्व में प्रकृत विषयको कहते हैं- अयोगिकेवलियोंका द्रव्यप्रमाण सबसे स्तोक है। चारों गुणरथानोंके उपशामक अयोगिकेबलियोंसे संख्यातगुणे हैं।चारों गुणस्थानोंके क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवलियोंका द्रव्यप्रमाण क्षपकोंसे संख्यातगुणा है । अप्रमत्तसंयतोंका प्रमाण सयोगियोंके प्रमाणसे संख्यातगुणा है। प्रमत्तसंयतोंका प्रमाण अप्रमत्तसंयतोंके प्रमाणसे संख्यातगुणा है । असंयतोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंके प्रसाणसे असंख्यातगुणा है। इसके ऊपर पल्योपम तक ओधके समान है। पल्योपमसे द्वीन्द्रियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणाकर क्या है ? अपने अवहारकालका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? पल्यापम प्रतिभाग है। अथवा, प्रतरांगुलका संख्यातवां भाग गुणकार है जो असंख्यात सूच्यंगुलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे पल्योपमको गुणित करके जो लब्ध आवे उतना प्रतिभाग है । उन्हीं दीन्द्रियोंके अपर्याप्तक जीवोंका अवहारकाल दीन्द्रियों के अ-क प्रत्योः ' असंखे० ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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