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________________ १, २, ८६.] दव्वपमाणाणुगमे एइंदियादिअप्पाबहुगपरूवणं [३२५ पज्जत्तविरहिदसुहुमेइंदियापज्जत्तमत्तेण । एवं चेव अट्ठमो वियप्पो । गवरि एइंदिया विसेसाहिया । सव्वत्थोवो वेइंदियअवहारकालो । तस्सेव अपज्जत्तअवहारकालो विसेसाहिओ । कत्तियमत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदमेत्तेण । पज्जत्तअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो। तस्सेव विक्खंभसूई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सगविक्खंभसूईए असंखेजदिभाग।। को पडिभागो ? सगअवहारकालो । अहवा सेढीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? सगअवहारकालवग्गो असंखेज्जाणि घणंगुलाणि । केत्तियमेवाणि ? सूचिअंगुलस्स संखेजदिभागमत्ताणि । वेइंदियअपज्जत्तविक्खंभसूई असंखेजगुणा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेञ्जदिभागो। वेइंदियविक्खंभई विसेसाहिया । केत्तियमेत्तो ? आवलियाए असखेजदिभाएण खंडिदमेत्तो । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगा। ? वेइंदियअवहारकालो । वेइंदियपज्जत्तदव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगविक्खंभसई । पर्याप्तकों के प्रमाणसे रहित सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेषसे आधिक हैं। इसीप्रकार आठवां विकल्प है। इतना विशेष है कि एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके प्रमाणसे विशेष अधिक हैं। द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है। उन्हींके अपर्याप्त जीवोंका अवहारकाल पूर्वोक्त अवहारकालसे विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे द्वीन्द्रिय जीवोंके अवहारकालको खंडित करके जो एक भाग आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंका अवहारकाल द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उन्हीं द्वन्द्रिय पर्याप्तकोंकी विष्कभसूची उन्हींके अवहारकालसे असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? अपनी विष्कभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? अपने अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है जो असंख्यात घनांगुलप्रमाण है। असंख्यात घनांगुल कितने हैं ? सूच्यंगुलके संख्यातवें भागमात्र हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंकी विष्कंभसूची द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवोंकी विष्कंभसूचीसे असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। द्वीन्द्रिय जीवोंकी विष्कभसूची द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंकी विष्कंभसूचीसे विशेष अधिक है। उस विशेषका कितना प्रमाण है ? आवलीके असंख्यातवें भागसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक जीवोंकी विष्कंभसूचीको खंडित करके जो एक भाग आवे तन्मात्र विशेष समझमा चाहिये। द्वीन्द्रिय जीवोंकी विष्कंभसूचीसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? द्वीन्द्रिय जीवोंका अवहारकाल गुणकार है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंका अन्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है? अपनी (द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवोंकी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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