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________________ १, २, ८७.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादिपमाणपख्वणं [३२९ वि अणंतगुणो जीववग्गमूलस्स वि अर्णतगुणो सव्वजीवरासिस्स असंखेजदिमागस्स अणंतिमभागो। को पडिभागो ? अणिदिया। तेसिमपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । बादरेइंदिया विसेसाहिया । सुहुमेइंदियअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । एइंदियअपज्जत्ता विसेसाहिया। सुहुमेइंदियपज्जत्ता संखेजगुणा । एइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया । सुहुमेइंदिया विसेसाहिया । एइंदिया विसेसाहिया ।। एवं इंदियमग्गणा समत्ता । कायाणुवादेण पुढविकाइया आउकाइया तेइउकाया वाउकाइया बादरपुढविकाइया बादरआउकाइया बादरतेउकाइया बादरवाउकाइया बादरवणप्फइकाइया पत्तेयसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता सुहुमपुढविकाइया सुहुमआउकाइया सुहुमतेउकाइया सुहुमवाउकाइया तस्सेव पज्जत्तापज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया. असंखेज्जा लोगा॥ ८७ ॥ अनन्तगुणा और सर्व जीधराशिके असंख्यातवें भागका अनन्तवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अनिन्द्रिय जीवोंका प्रमाण प्रतिभाग है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके प्रमाणसे उन्हींके अपर्याप्तक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे बादर एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक है । इनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं। इनसे एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं। ____ इसप्रकार इन्द्रियमार्गणा समाप्त हुई। कायानुवादसे पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक जीव तथा बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव तथा इन्हीं पांच बादरसंबन्धी अपर्याप्त जीव, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक जीव तथा इन्हीं चार सूक्ष्मसंबन्धी पर्याप्त जीव और अपर्याप्त जीव, ये सब प्रत्येक द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात लोकप्रमाण हैं ॥ ८७॥ १ कायानुवादेन पृथिवीकायिका अप्कायिकास्तेजःकायिका वायुकायिका असंख्येयलोकाः । स.सि. १,९. आउडुरासिवारं लोगे अण्णोण्णसंगुणे तेऊ । भू-जल-वाऊ अहिया पडिभागो असंखलोगो दु॥ गो. जी. २०४. अपदिद्विदपत्तेया असंखलोगप्पमाणया होति । तत्तो पदिविदा पुण असंखलोगेण संगुणिदा ॥ गो. जी. २०५. असंखया सेसा। पंञ्चसं. २, ९. पत्तेयपज्जवणकाइयाउ पयरं हरति लोगस्स । अंगुलअसंखमागेण माइयं भूदगतणू य । आवलिवग्गो अन्तरावली य गुणिओ हु बायरा तेऊ । वाऊ य लोगसंखं सेसतिगमसंखिया लोगा ॥ पंचसं. २, १०-११..असंविध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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