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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
है, जिसके लिए मूलमें सर्वथा कोई आधार नहीं है । प्राकृत में ' वम्मह ' शब्द ' मन्मथ ' के लिए आता है । हैम प्राकृतव्याकरण में इसके लिए एक स्वतंत्र सूत्र भी है- ' मन्मथे वः ८, १, २४२. इसकी वृत्ति है — मम्मथे मस्य वो भवति, वम्महो ' । इसीके अनुसार हमने अनुवाद किया है, जिसमें कोई दोष नहीं ।
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७ शंका - आगमे मूले ' सम्मइसुत्ते ' इति लिखितमस्य भवद्भिरर्थः कृतः ' सम्मतितर्फे ' । सम्मतितर्काख्यं श्वेताम्बरीयग्रन्थमस्ति, तस्य निर्देश आचार्यैः कृतः वा सम्महसुतं नाम किमपि दिगम्बरीयं ग्रन्थं वर्तते ? ( पं. झम्मनलालजी तर्कतीर्थ, पत्र ता. ४-१-४१ ) अर्थात् मूलके ' सम्मइत्ते ' से सम्मतितर्कका अर्थ लिया है जो श्वेताम्बरीय ग्रंथ है । आचार्यने उसीका उल्लेख किया है या इस नामका कोई दिगम्बरीय ग्रंथ भी है ! समाधान - णामं ठवणा दवियं ' इत्यादि गाथा उद्धृत करके जो सन्मति सूत्रका उल्लेख किया है वह सन्मतितर्क नामका प्राप्त ग्रन्थ ही प्रतीत होता है, क्योंकि यह गाथा तथा उससे पूर्व उद्घृत चार गाथाएं वहां पाई जाती हैं | सन्मतितर्क के कर्ता सिद्धसेनका स्मरण महापुराण आदि अनेक ' दिगम्बर प्रन्थोंमें भी पाया जाता है, जिससे अनुमान होता है कि ये आचार्य दोनों सम्प्रदायोंमें माम्य रहे हैं । इससे अन्य कोई ग्रन्थ इस नामका जैन साहित्य में उपलब्ध भी नहीं है ।
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८ शंका - वच्चस्थणिरवेक्खो मंगलसद्दो णाममंगलं ' इत्यत्र तस्य मंगलस्याधारविषयेष्वष्टविधेष्वजीवाधारकथने भाषायां जिनप्रतिमाया उदाहरणं प्रदत्तं तत्कथं संगच्छते ? अजीवोदाहरणे जिनभवनमुदाह्रियतामिति । ( पं. झम्मनलाल जी तर्कतीर्थ, पत्र ता. ४-१-४१ ) अर्थात् नाममंगलके आठ प्रकार के आधार - कथन में भाषानुवादमें अजीव आधारका उदाहरण जिनप्रतिमाका दिया गया है, सो कैसे संगत है ? जिनभवनका उदाहरण अधिक ठीक था ?
समाधान - धवलाकारने नाममंगलका जो लक्षण दिया है और उसके जो आधार बतलाये हैं, उनसे तो यही ज्ञात होता है कि एक या अनेक चेतन या अचेतन मंगल द्रव्य नाममंगलके आधार होते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम पार्श्वनाथ तीर्थंकरका नामोच्चारण करें तो यह एक जीवाश्रित नाममंगल होगा । यदि हम चौवीस तीर्थकरों का नामोच्चारण करें तो यह अनेक जीवाश्रित नाममंगल होगा । यदि हम अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ, या केशरियानाथ आदि प्रतिमाओंका नामोच्चारण करें तो यह अजीवाश्रित नाममंगल होगा, इत्यादि । इस प्रकार जिनप्रतिमा माममंगलका आधार बन जाती है, जिसका कि उसी पृष्ठपर दी हुई टिप्पणियों से यथोचित समर्थन हो जाता है । इसी प्रकार पंडितजी द्वारा सुझाया गया जिनमन्दिर भी अजीव नाममंगलका आधार माना जा सकता है ।
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