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शंका-समाधान
पृष्ठ २९
९ शंका - पृ० २९ पर क्षेत्रमंगलके कथनमें लिखा है ' अर्धाष्टारत्न्यादि पंचविंशत्युत्तरपंचधनुःशतप्रमाणशरीर ' जिसका अर्थ आपने 'साढ़े तीन हाथसे लेकर ५२५ धनुष तकके शरीर' किया है, और नीचे फुटनोटमें ' अर्धाष्ट इत्यत्र अर्ध चतुर्थ इति पाठेन भाग्यम्' ऐसा लिखा है । सो आपने यह कहांसे लिखा है और क्यों लिखा है ? ( नानकचंदजी, पत्र १ - ४-४० ) समाधान -- केवलज्ञानको उत्पन्न करनेवाले जीवोंकी सबसे जघन्य अवगाहना साढ़े तीन हाथ ( अरत्नि) और उत्कृष्ट अवगाहना पांचसौ पच्चीस धनुष प्रमाण होती है । सिद्धजीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना इसीलिए पूर्वोक बतलाई है । इसके लिए त्रिलोकसारकी गाथा १४१ - १४२ देखिये | संस्कृतमें साढ़े तीनको 'अर्धचतुर्य' कहते हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर ‘ अर्घाष्ट ' के स्थानमें ' अर्धचतुर्थ ' का संशोधन सुझाया गया है, वह आगमानुकूल भी है । ' अधीष्ट' का अर्थ ' साढ़े सात ' होता है जो प्रचलित मान्यता के अनुकूल नहीं है । इसी भागके पृष्ठ २८ की टिप्पणीकी दूसरी पंक्ति में त्रिलोकप्रज्ञप्तिका जो उद्धरण ( आढट्ठहत्यपहुदी ) दिया है उससे भी सुझाए गये पाठकी पुष्टि होती है ।
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पृष्ठ ३९
१० शंका - धवलराजमें क्षयोपशमसम्यक्त्वकी स्थिति ६६ सागरसे न्यून बतलाई है, जब कि सर्वार्थसिद्धिमें पूरे ६६ सागर और राजवार्तिक में ६६ सागर से अधिक बतलाई है ? इसका क्या कारण है ! ( नानकचंदजी, पत्र १-४-४१ )
समाधान - सर्वार्थसिद्धिमें क्षायोपशमिकसम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिति पूरे ६६ सागर वा राजवार्तिक में सम्यग्दर्शनसामान्यकी उत्कृष्ट स्थिति साधिक ६६ सागर और धवला टीका पृ. ३९ पर सम्यग्दर्शन की अपेक्षा मंगलकी उत्कृष्ट स्थिति देशोन छयासठ सागर कही है । इस मतभेदका कारण जानने के पूर्व ६६ सागर किस प्रकार पूरे होते हैं, यह जान लेना आवश्यक है ।
कारने जीवाण खंडको अन्तरप्ररूपणा में ६६ सागरकी स्थितिके पूरा करने का क्रम इसप्रकार दिया है:
एको तिरिक्खो मणुसो वा लंतव-काविट्ठवासियदेवेषु चोइससागरोवमा उडिदिएसु उप्पण्णो । एक सागरोवमं गमिय विदियसागरोवमादिसमए सम्मतं पडिवष्णो । तेरस सागरोवमाणि तस्थ अच्छिय सम्मत्तेन सह खुदो मणुसो जादो । तत्थ संजमं संजमासंजमं वा अणुवालिय मणुसाउएणूग-बावीस सागरोवममाउट्ठिदिएस आरणच्ददेवेसु उववष्णो । तत्तो चुदो मणुसो जादो । तत्थ संजममणुसारिय उवरिमगेवज्जे देवेसु मणुसाउगेणूणएकतीस सागरोवमाउट्ठिदीएस उबवण्णो । अंतो मुहुत्तूणछावद्विसागरोवमचरिमसमए परिणाम पच्चएण सम्मामिच्छत्तं गदो | x x x एसो उपचिक्रमो अउप्पण्ण उपायण उत्तो । परमत्थदो पुण जेण केण वि पयारेण छावट्टी पूरेदम्वा ।
अर्थात् — कोई एक तिथंच अथवा मनुष्य चौदह सागरोपमकी आयुस्थितिवाले लान्सव
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