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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ७७. भागे हिदे संखेज्जरूवाणि आगच्छति । ताणि विरलिय सधजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ बहुखंडा सुहुमेइंदियपज्जता हाँति । सुहुमेइंदियअपज्जत्तेहि सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे तत्थ लद्धसंखेज्जरूवाणि विरलिय सयजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थेगखंडं सुहुमेइंदियअपज्जत्ता हाँति । बादरेइंदिएहि सधजीवरासिम्हि भागे हिदे तत्थ लद्धअसंखेज्जलोगे विरलिय सधजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थेगरूवधारदं बादरेइंदिया हाँति । बादरेइंदियअपज्जत्तेहि सधजीवरासिम्हि भागे हिदे तत्थ लद्धअसंखज्जलोगे विरलिय सव्वजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थेगरूवधरिदं बादरेइंदियअपज्जत्ता होति । एवं बादरेइंदियपज्जत्ताणं पि वत्तव्यं । एसा चेव णिरुत्ती हवदि । कुदो ? एत्थ कारणादो णिरुत्तीए भेदाणुवलंभादो ।
वेइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिया तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया, असंखेज्जा ॥ ७७ ॥
विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति सर्व जीवराशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर वहां बहुभागप्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव प्राप्त होते हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके प्रमाणसे सर्व जीवराशिके भाजित करने पर वहां जो संख्यात अंक लब्ध आवें उनका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति सर्व जीवराशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर वहां एक खंड प्रमाण सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव होते हैं। बादर एकेन्द्रिय जीवोंके प्रमाणसे सर्व जीवराशिके भाजित करने पर वहां जो असंख्यात लोक लब्ध आवें उन्हें विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति सर्व जीवराशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर वहां एक विरलनके प्रति जितना प्रमाण प्राप्त हो उतने बादर एकेन्द्रिय जीव होते हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके प्रमाणसे सर्व जीवराशिके भाजित करने पर वहां जो असंख्यात लोकप्रमाण राशि लब्ध आवे उसे विरलित करके और उस विरलित राशिक प्रत्येक एकके प्रति सर्व जीवराशिको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर वहां एक विरलनके प्रति जितना प्रमाण प्राप्त हो उतने बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव होते हैं। इसीप्रकार बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंका भी कथन करना चाहिये । और यही निरुक्ति है, क्योंकि, यहां पर कारणसे निरुक्तिमें भेद नहीं पाया जाता है।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव तथा उन्हींके पर्याप्त और अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात है ॥ ७७ ॥
थावरसंखपिपीलियभमर xx आदिगा समेदा जे । जुगवारमसंखेज्जा॥ गो. जी. १७५. असंखेज्जा बेइंदिआ जाव असंखिज्जा चउरिदिया। अनु. द्वा. सू. १४१ पत्र १७९.
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