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________________ ३०२ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ७३. हारकालपडिभागो। तदो सणक्कुमारमाहिंद-तदियपुढवि-ब्रम्हब्रम्होत्तर-चउत्थपुढवि-लांतवकाविट्ठ-पंचमपुढवि-सुक्कमहासुक्क-सदारसहस्सार-छट्ठ-सत्तमपुढवीणं मिच्छाइट्ठिअवहारकालो कमेण असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेढिवारसमेकारसम-दसम-णवम-अट्ठम-सत्तम-छट्ठमपंचम-चउत्थ-तदियवग्गमूलाणि जहाकमेण गुणगारा । तदो सत्तमपुढविअवहारकालस्सुवरि तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? पढमवग्गमूलं । तदो छट्ठपुढवि-सदारसहस्सार-सुक्कमहासुक्क-पंचमपुढवि-लांतवकाविट्ठ-चउत्थपुढवि-बम्हबम्होत्तर-तइयपुढवि-सणक्कुमारमाहिंदविदियपुढवीणं मिच्छाइट्ठिदव्वं कमेण असंखेजगुणं । को गुणगारो ? सेढितदिय-चउत्थपंचम-छट्ठ-सत्तम-अट्ठम-णवम-दसम-एकारसम-बारसमवग्गमूलाणि जहाकमेण गुणगारा ? तदो विदियपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वस्सुवरि पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठिविक्खंभई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? वारसमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि तेरसवग्गमूलाणि । वाणवेंतरमिच्छाइट्ठिविक्खंभसूई संखेजगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । जोइसियमिच्छाइट्ठिविवखंभसूई संखेज्जगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया । देवमिच्छाइट्ठिविक्खंभसूई विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? संखेज्जसमय है। दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे सानत्कुमार-माहेन्द्र, तीसरी पृथिवी, ब्रह्मब्रह्मोत्तर, चौथी पृथिवी, लान्तव-कापिष्ठ, पांचवीं पृथिवी, शुक्र-महाशुक्र, शतार-सहस्रार छठवीं और सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल क्रमसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है? जगश्रेणीका बारहवां, ग्यारहवां, दशवां, नौवां, आठवां, सातवां, छठा, पांचवां, चौथा तीसरा वर्गमूल क्रमसे गुणकार है। तदनन्तर सातवीं पृथिवीके अवहारकालके ऊपर उसीका मिथ्यादृष्टि द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका प्रथम वर्गमूल गुणकार है। इससे छठी पृथिवी, शतार-सहस्रार, शुक्र-महाशुक्र, पांचवी पृथिवी, लावत-कापिष्ठ, चौथी पृथिवी, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, तीसरी पृथिवी, सानत्कुमार-माहेन्द्र और दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य क्रमसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका तीसरा, चौथा, पांचवां, छठा, सातवां, आठवां, नौवां, दशवां, ग्यारहवां और बारहवां वर्गमूल क्रमसे गुणकार हैं। अनन्तर दूसरी पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके ऊपर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्याष्टियोंकी विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात तेरहवें वर्गमूलप्रमाण है। इससे वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची संख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इससे ज्योतिषी मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची संख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इससे देव मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है। संण्यात समयोंसे ज्योतिषी मिथ्याग्दृष्टियोंकी विष्कंभसूचीको खंडित करके जो एक भाग लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है। इससे पंचेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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