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________________ १, २, ७३.] दव्वपमाणाणुगमे चउग्गइअप्पाबहुगपरूवणं [३०३ खंडिदएयखंडमेत्तेण । पंचिदियतिरिक्खपजत्तमिच्छाइविविक्खंभसूई संखेजगुणा । को गुणगारो ? संखेजसमया । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तविक्खंभमूई असंखेजगुणा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्त संखेज्जदिभागो । पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइहिविक्खंभसूई विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडिदएयखंडमेत्तेण । भवणवासियमिच्छाइद्विअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? सूचिअंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो । पढमपुढविमिच्छाइटिअवहारकालो असंखेजगुणो । को गुणगारो? णेरइयविक्खंभसूई। मणुसअपजत्तदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो? सूचिअंगुलतदियवग्गमूलं । सोहम्मीसाणमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सूचिअंगुलविदियवग्गमूलं । सेढी असंखेजगुणा । को गुणगारो ? विक्खंभसूई । सोहम्मीसाणमिच्छाइट्ठिदव्बमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसूई । पढमपुढविमिच्छाइद्विदव्यमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सोहम्मीसाणविक्खंभसई । भवणवासियमिच्छाइट्ठिदव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? णेरइयमिच्छाइट्ठिविक्खंभसूई । पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइद्विदव्वमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सेढीए असंखेज्जदिभागो असंखे तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची संख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । इससे पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंकी विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। इससे पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूची विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक है? आवलीके असंख्यातवें भागसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंकी विष्कंभसूचीको खंडित करके जो एक खंड लब्ध आवे तन्मात्र विशेषसे अधिक है । इससे भवनवासियोंका मिथ्याष्टि अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इससे पहली पृथिवीके मिथ्याष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? नारकियोंकी मिथ्याढाष्ट विष्कंभसूची गुणकार है। पहली पृथिवीके मिथ्याष्टि अवहारकालसे मनुष्य अपर्याप्तोंका द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? सूच्यंगुलका तृतीय वर्गमूल गुणकार है। मनुष्य अपर्याप्तोंके द्रव्यसे सौधर्म और ऐशानके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? सूच्यंगुलका द्वितीय वर्गमूल गुणकार है। सौधर्मद्विकके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? विष्कंभसूची गुणकार है । जगश्रेणीसे सौधर्म और ऐशानके मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण असंख्यात. गुणा है । गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार है । सौधर्मद्विकके मिथ्यादृष्टि द्रन्यसे पहली पृथिवीका मिथ्यादृष्टि द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? सौधर्म और ऐशानकी मिथ्यादृष्टि विष्कभसूची गुणकार है। पहली प्रथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे भवनवासी मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? नारकियोंकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची गुणकार है। भवनवासी मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि द्रव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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