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________________ २९८) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ७३. चउण्हमुवसामगा संखेज्जगुणा । चउण्हं खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । मणुससंजदासजदा संखेजगुणा । मणुससासणा संखेज्जगुणा। सम्मामिच्छाइट्ठी संखेज्जगुणा। असंजदसम्माइट्ठी संखेजगुणा। . मणुसपज्जत्तमिच्छाइट्ठी संखेज्जगुणा । मणुसिणीमिच्छाइट्ठी संखेज्जगुणा । सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा तिउणा सत्तगुणा वा। सोहम्मीसाणअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? सव्वट्ठसिद्धिदेवपडिभागो । सम्मामिच्छाइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । सासणसम्माइटिअवहारकालो संखेज्जगुणो । को गुणगारो? संखेज्जसमया । एवं णेयव्यं जाव सदार-सहस्सारो त्ति । तदो जोइसिय-वाणवेंतरभवणवासियदेवि त्ति णेयव्वं । तदो तिरिक्खअसंजदसम्माइट्ठि अवहारकालो असंखेजगुणो । सम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्माइटिअवहारकालो संखेज्जगुणो । अयोगिकेवली जीवराशि सबसे स्तोक है। इससे चारों गुणस्थानोंके उपशामक संख्यातगुणे हैं । चारों गुणस्थानोंके क्षपक उपशामकोंसे संख्यागुणे हैं। सयोगिकेवली क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं । प्रमत्तसंयत जीव अमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। मनुष्य संयतासंयत प्रमत्तसंयतसे संख्यातगुणे हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य संयतासंयत मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। पर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। मिथ्यादृष्टि मनुष्यनी पर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव मिथ्यादृष्टि मनुष्यनियों से तिगुणे अथवा सातगुणे हैं। सौधर्म और ऐशान कल्पके असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सर्वार्थसिद्धिके देवोंसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलीके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है? सर्वार्थसिद्धिके देवोंका प्रमाण प्रतिभाग है। सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंका सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकाल उन्हींके असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उन्हींके सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल उन्हींके सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालसे संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इसीप्रकार शतार और सहस्रार कल्पतक ले जाना चाहिये । शतार और सहस्रार कल्पके सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालसे ज्योतिषी, वाणव्यन्तर और भवनवासी टेवियों तक ले जाना चाहिये।भवनवासी देवियोंके सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालसे तिर्यचोंका असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकाल असंख्यातगुणा है। इससे उन्हींका सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकाल असंख्यातगुणा है। इससे उन्हींका सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकाल संख्यातगुणा १ तिगुणा ससगुणा वा सव्वट्ठा माणुसीपमाणादो । गो. जी. १६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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